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गुरुवार, 2 मई 2013

हत्या

हत्या और मृत्युदंड
शहीद सरबजीत और आतंकी कसाब
• कविता वाचक्नवी
एक प्रमाणित हत्यारे और आतंकवादी की संवैधानिक दंड के तहत हुई मृत्यु और एक बिना प्रमाण के पकड़े गए व्यक्ति की पीट-पीट कर कर दी गई हत्या का मोटा-मोटा अन्तर भी आँख के फूटों को दीखता नहीं ?
भारत सरकार ने कोई सार्थक पहल इस मामले में नहीं की और पाकिस्तान तो अपनी जेलों में दूसरे देश वालों की दुर्दशा करने में कुख्यात है ही। किसी दूसरे देश के व्यक्ति की उनकी जेल में हुई इस अमानवीय हत्या में वह बराबर का दोषी है, उसे यह अपराध अपने सिर लेना चाहिए और सरबजीत को न्याय न दिला पाने के अपराध के बाद कम से कम अब इस तरह हुई उसकी हत्या पर राष्ट्रीय क्षमा उसे माँगनी चाहिए कि वह जेल में जीवनरक्षा तक उपलब्ध नहीं करा सका और इतने अन्यायिक ढंग से हत्या कर दी गई।

सरबजीत की पाकिस्तान की जेल में कर दी गई हत्या के बाद देश और देश की सरकार के कारिन्दे पहले से तैयार कर रखे गए बयान पढ़ने में मशगूल हैं। जो लोग कसाब को संवैधानिक ढंग से दिए गए दण्ड पर विलाप कर रहे थे, भारत को कोस रहे थे, वे कविता-कहानी और अपनी पुस्तकों और प्रकाशन के आयोजन की चर्चाओं में मस्त व्यस्त हैं।
एक अपराधी जिसका अपराध प्रमाणित था, जिसके सरेआम दूसरे देश में घुस कर नागरिकों, पुलिस व सेना पर मशीनगनों से हमला कर हत्या करने के वीडियो तक संसार ने देखे हैं, उसे पंचतारा होटल की सुविधाओं वाले 'सेल' में राष्ट्रीय दामाद की तरह रख कर पाला पोसा गया ( तब भी उसकी संवैधानिक दंड संहिता अनुसार मिले दंड से हुई मृत्यु पर भारत में बैठे तथाकथित मानवाधिकारवादी स्यापा कर रहे थे, छाती कूट रहे थे और देश को धिक्कार रहे थे।
कसाब
दूसरी ओर, जिस व्यक्ति ने कोई अपराध नहीं किया, उसके अपराध का कोई एक प्रमाण नहीं... उसके पास कभी कोई हथियार नहीं, कोई साजिश नहीं तब भी उसे इस तरह की असुरक्षित व दोयम दर्जे की जेल में क्यों रखा गया जहाँ अन्य कैदी ईंटे उखाड़ कर उस पर हमला करने के लिए स्वतंत्र थे ? है कोई उत्तर ?
यदि झूठ-भर को मान भी लिया जाए कि सरबजीत भारतीय जासूस था तो जासूस दूसरे देश की सरकार द्वारा नियुक्त किया गया होता है, नियमानुसार उसके साथ राजनयिक तरीके से पेश आया जाता है । कसाब तो पाकिस्तान द्वारा नियुक्त जासूस भी नहीं था वह तो अपराधियों आतंकियों के निजी गैंग का सदस्य था और निजी तौर पर राष्ट्रीय सीमाओं का अतिक्रमण कर भारत में घुसा था, यहाँ तक कि स्वयं पाकिस्तान ने उस से पल्ला झाड़ लिया था और उसकी ज़िम्मेदारी लेने से मना कर दिया था । दूसरी ओर सरबजीत के मामले में भारत ने कभी पल्ला नहीं झाड़ा और न पाकिस्तान की तरह उसे अपराधी और आतंकी बताया..... न वह था ही।
इन सब तथ्यों के आलोक में सरबजीत के साथ इस प्रकार के दुर्व्यवहार व अमानवीयता के लिए पाकिस्तान के पास चुल्लू-भर पानी भी नहीं बचा क्या ? और उन मानवाधिकारवादियों के पास भी नहीं,? चुल्लू भर पानी तो दूर..... आँख का पानी तक मर गया ?
एक प्रमाणित हत्यारे और आतंकवादी की संवैधानिक दंड के तहत हुई मृत्यु और एक बिना प्रमाण के पकड़े गए व्यक्ति की पीट-पीट कर कर दी गई हत्या का मोटा-मोटा अन्तर भी आँख के फूटों को दीखता नहीं ?
भारत सरकार ने कोई सार्थक पहल इस मामले में नहीं की और पाकिस्तान तो अपनी जेलों में दूसरे देश वालों की दुर्दशा करने में कुख्यात है ही। किसी दूसरे देश के व्यक्ति की उनकी जेल में हुई इस अमानवीय हत्या में वह बराबर का दोषी है, उसे यह अपराध अपने सिर लेना चाहिए और सरबजीत को न्याय न दिला पाने के अपराध के बाद कम से कम अब इस तरह हुई उसकी हत्या पर राष्ट्रीय क्षमा उसे माँगनी चाहिए कि वह जेल में जीवनरक्षा तक उपलब्ध नहीं करा सका और इतने अन्यायिक ढंग से हत्या कर दी गई।
वैसे बहुत सम्भव है कि यह काम पाकिस्तान ने स्वयं करवाया है ताकि इस तरह वह बिना प्रमाण के किसी निरपराध को मत्युदण्ड देने के दोष से बच जाए और प्रत्यर्पण से होने वाली नाक नीची होने से भी। उसके लिए सबसे सरल मार्ग यह थ कि जेल में सरबजीत की हत्या करवा दी जाए।
साभार: हिन्दी भारत
http://www.hindi-bharat.com/2013/05/Appeased-by-India-butchered-by-Pakistan-Sarabjeet.html

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