भारत के मुसलमान हैं आप
• ए.एम. बिस्मिल
दीन-धर्म उसे ही कहते हैं जिसके करने से पहले, बीच में और बाद में डर, शक व शुभा और शर्म न हो तथा जिससे शरीर, आत्मा तथा देश की उन्नति हो। सुख और खुशहाली के लिए भारत में रह रहे मुसलमानों को यह चाहिए कि वे संगठित होकर भारत के प्रति सदा अपनी वफादारी का परिचय दें। सब प्रकार की अफवाहों से दूर रहकर विदेशी शक्ति तथा धन पर इतराकर भारत के प्रति गद्दारी की भावना रखने वाले चन्द सिरफिरे मुसलमानों से सदा दूर रहें। इस प्रकार के तथाकथित मुसलमान नेता शान्ति के साथ खुशहाली की ओर बढ़ रहे मुसलमानों के सख्त दुश्मन हैं। ऐसे नेता आज मात्र अपनी कुर्सी के लोभ में दूसरों के घरों को आग लगा अपने हाथ सेकना ही जीवन का मुख्य उद्देश्य समझते हैं।
आज हमें भारत जैसे हिन्दू प्रधान देश में रहते हुए जिसे स्वतन्त्रता के साथ अपने मजहबी उसूलों के अनुसार चलने अर्थात् मुस्लिम यूनिवर्सिटियां खोलकर खोलकर अपने बच्चों को उर्दू माध्यम से शिक्षा देने, अपनी रीति-रिवाज के अनुसार जीवन यापन करने, निर्भीकता से मजहबी जलसे, जुलूस निकालने, भारत सरकार की ओर से अपने ईद आदि त्यौहारों की छुट्टियां पाने, यहां अपने नाम पर मनपसन्द जमीनें खरीदने, बेरोकटोक व्यापार करने इच्छा के अनुसार अधिक से अधिक मस्जिदें बनाकर इस्लाम का प्रचार करने, अल्पसंख्यक होने के नाते कॉलेजों, चुनावों तथा सरकारी नौकरियों में विशेष सीटें प्राप्त करने और यहां तक कि राजनीति में भाग लेकर राष्ट्रपति तक बनने की जितनी छूट यहां एक गैर-मुस्लिम देश में प्राप्त है उतनी दुनिया के किसी भी गैर-मुस्लिमदेश में नहीं है। यथा चीन में कोई कोई मुसलमान एक से अधिक पत्नी नहीं रख सकता तथा न दो से अधिक बच्चे पैदा कर सकता है। सिंगापुर में तमाम कब्रों को तोड़कर बिजली द्वारा मुर्दों को जलाया जाता है। जापान के मुसलमानों को अपने मुर्दों के लिए कब्रें बनाने की आज्ञा नहीं। इस्राइल आदि देशों में कोई मुसलमान अपने मजहब का प्रचार नहीं कर सकता। नेपाल में कोई मुसलमान किसी भी प्रकार से किसी हिन्दू का मजहब बदलकर उसे मुसलमान नहीं बना सकता। ऐसा करने वाले को कठोर दण्ड मिलता है। साथियो, आज इस हिन्दू-धर्म प्रधान देश में रहते हुए हम मुसलमानों को जितनी सुविधाएं प्राप्त हैं उन सब का एक अंश भी इन सिख, जैन, बौद्ध आदि हिन्दुओं को किसी भी मुसलमान देश में प्राप्त नहीं हैं।
अरब, ईराक, ईरान अथवा पाकिस्तान आदि मुसलमान देशों में कोई सिख, जैन, बौद्ध आदि हिन्दू (सरकारी सहायता से) वहां धार्मिक, सामाजिक या राजनीतिक स्वतन्त्रता या सुविधा प्राप्त नहीं कर सकता। यथा-
1. कोई भी सिख, जैन, बौद्ध आदि हिन्दू मुस्लिम देशों में अपने धर्म एवम् भाषा के अनुसार न तो कोई विद्यालय अथवा विश्वविद्यालय खोल सकता है और न ही भारत में चल रहे अलीगढ़ तथा जामिया आदि विश्वविद्यालयों की तरह हिन्दी माध्यम से पढ़ने की सुविधा ही पा सकता है।
2. हिन्दुस्तान में उर्दू माध्यम से चल रहे आम विद्यालयों तथा मस्जिदों में चल रही हजारों मजहबी पाठशालाओं की तरह न उन मुस्लिम देशों में ऐसा कोई संस्कृत वेद-विद्यालय ही खोल सकता है और न ही किसी सरकारी विद्यालय में अपने धर्म के अनुसार हमारे जुम्मे की तरह मनमानी छुट्टी ही मिल सकती है।
3. कोई भी हिन्दू वहां न तो हिन्दी भाषा में कोई कामकाज कर सकता है और न ही किसी को सरकार की ओर से ईद आदि की तरह श्रीराम नवमी, श्रीकृष्ण अष्ठमी, दशहरा अथवा दीपावली की छुट्टी ही मिल सकती है।
4. हिन्दी अथवा संस्कृत माध्यम से कोई हिन्दू उन मुस्लिम देशों में किसी प्रकार का रेडियो अथवा टीवी का कार्यक्रम नहीं सुन-देख सकता। रामनवमी आदि धार्मिक प्रोग्राम को सुनना या देखना तो दूर अपितु प्रतिदिन काम में आने वाले साधारण समाचार भी अपनी भाषा में नहीं सुन सकता।
5. हम मुसलमानों की तरह अपना राष्ट्रपति चुनना तो दूर अपितु वहां हिन्दुओं के अल्पसंख्यक होने के नाते न तो उन्हें राजनीति में भाग लेने की आज्ञा है और न ही चुनाव लड़ने की। यहां तक कि अल्पसंख्यक के नाम पर किसी स्कूल या कॉलेज में सीट भी नहीं ले सकता।
6. वहीं रह रहे हिन्दुओं के द्वारा उन मुस्लिम देशों में अपने धर्म या संस्था के नाम पर किसी अलग स्थान की मांग करना तो दूर, हिन्दू होने नाते वे एक छोटी-सी सरकारी नौकरी भी प्राप्त नहीं कर सकते।
7. भारत के सरकारी कार्यालयों में लगे हुए चित्रों की भांति मुस्लिम देशों में अपने धर्म या संस्था के नाम पर उन देशों में शेख के चित्र की तरह कोई भारतीय अपने हिन्दू नेता का चित्र नहीं लगा सकता।
8. भारत के राष्ट्रपति भवन में पाकिस्तान के तत्कालीन जनरल जिया-उल-हक के नमाज पढ़ने की तरह कोई भी हिन्दू वहां किसी सामान्य सरकारी स्थान पर यज्ञ-हवन नहीं कर सकता।
9. अपने हिन्दू धर्म के अनुसार बैण्ड बाजे बजाकर वहां न तो कोई भी हिन्दू जलसा-जुलूस ही निकाल सकता है और न ही हमारे यहां ताजियों की तरह अपने धर्म का वहां खुलकर प्रचार ही कर सकता है।
10. वहां के हिन्दुओं को खुलेआम अपने धर्म का पालन करने की छूट नहीं है।
11. हिन्दुस्तान में लाखों हलाल के मांस की दुकानें चल रही हैं पर वहां झटके के मांस पर पूर्ण प्रतिबन्ध है। वहां किसी सिख के द्वारा सुअर के मांस की दुकान भी नहीं खोली जा सकती।
12. कोई हिन्दू वहां गाय जैसे अपने किसी पूज्य पशु के मांस को खाने से किसी को नहीं रोक सकता जो वहां मुसलमानों के द्वारा खुलेआम खाया जाता है।
13. किसी हिन्दू के द्वारा इन तमाम मुस्लिम देशों में खुलेआम अपने धर्म की किताब, वेद, शास्त्र, रामायण, गीता आदि छापना या बेचना तो दूर किसी दुकान पर इन्हें रखा भी नहीं जा सकता। आर्य समाज के ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश पर तो वहां पूर्ण प्रतिबन्ध है।
14. भारत में कश्मीर जैसी मुस्लिम बाहुल्य वाली सरकार की तरह अरब देशों में शराब की दुकान खोलना तो दूर बल्कि यदि कोई पीता हुआ पकड़ा जाए तो उसे कोड़े मारने की कठोर सजा दी जाती है।
15. मैं भारत में अपने बहुत से मुस्लिम भाइयों की कब्रों को कहीं-कहीं तो बड़े-बड़े राजमार्गों को रोकते हुए देखता हूं। पर उन मुस्लिम देशों में कोई हिन्दू किसी एकांत जंगल में भी अपने धर्म के मन्दिर, मठ अथवा गुरुद्वारे के नाम पर डेढ़ ईंट भी नहीं लगा सकता।
16. कोई भी हिन्दू उन मुस्लिम देशों में धोती पहनकर या कृपाण लटकाकर कार्य नहीं कर सकता। बाहर तो क्या इन देशों में वह अपने घर पर भी डरता होगा। आपको यह भी पता होना चाहिए कि सऊदी अरब में कोई खालसा अर्थात् सिख आज भी प्रवेश नहीं पा सकता।
17. कोई हिन्दू, चाहे वह पण्डित हो या सिख, वहां की सेना या पुलिस में नौकरी कर पाना तो दूर अन्य किसी सरकारी कार्यालय में भी नौकरी नहीं पा सकता।
18. कोई हिन्दू वहां पर अपनी फैक्टरी व व्यापार के लिए जमीन नहीं ले सकता, किसी प्रकार का भी स्वतन्त्र व्यापार नहीं कर सकता। कोई भी हिन्दू वहां उसी हालत में व्यापार कर सकता है जब वह किसी स्थानीय मुस्लिम को अपना पार्टनर बनाकर 51 प्रतिशत का हिस्सेदार बनाए।
19. भारत की आजादी के बाद हमारे और हिन्दुओं के बीच अनेक बार गौ हत्या के सवाल पर झगड़े हो चुके हैं। झगड़े कभी भी किसी वर्ग के लिए लाभदायक नहीं होते हैं।
सऊदी अरब में गौ हत्या करने वाले को मौत की सजा मिलती है। ऐसी स्थिति में भी वहां बिना गाय काटे मुसलमानों की शादियां और दावतें सफलतापूर्वक होती हैं। यदि हमारे मुसलमान भाई सऊदी अरब की तरह यहां भी गाय को न मारने का निश्चय कर लें तो भारत में हिन्दू और मुसलमान अमन से जी सकते हैं।
20. देश के कुछ गद्दार लोग यह कहकर भी दंगे भड़काते हैं कि हिन्दुस्तान में इस्लाम मजहब सुरक्षित नहीं है। एक मुसलमान होने के नाते मैं यह समझता हूं कि इस बात से बड़ा कोई दूसरा सफेद झूठ नहीं हो सकता।
इस अफवाह की असलियत का तो इसी से पता चलता है कि 1947 के बाद हिन्दुस्तान में हजारों नयी मस्जिदें, हजारों नये उर्दू माध्यम के स्कूल तथा अलीगढ़, जामिया और देवबन्द जैसे विश्वविद्यालय बेखौफ चल रहे हैं। जबकि दूसरी ओर पाकिस्तान में हिन्दुओं के उंगलियों पर गिने जा सकने वाले 2-4 ही धर्म स्थान ही बचे हैं। जबकि हिन्दुस्तान में ऐसा नहीं है। क्या यह मुस्लिमों पर अत्याचार का प्रतीक है?
21. पाकिस्तान, ईरान, ईराक या सऊदी अरब आदि मुस्लिम देशों की क्रिकेट, फुटबॉल या हाकी आदि की टीमों में कोई भी हिन्दू खिलाड़ी नहीं खेलता। जबकि दूसरी ओर यहां की ज्यादातर खेल टीमों में बहुत से मुसलमान खिलाड़ी हैं। यहां तक कि एशियाड में हाकी की दुर्भाग्यवश हारने वाली टीम के कप्तान जफर इकबाल भी मुसलमान ही थे। इससे स्पष्ट है कि भारत में मुसलमानों को कितने अधिकार प्राप्त हैं।
उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए सब मुसलमानों को चाहिए कि अपनी सर्वांगीण उन्नति के लिए हिन्दुस्तान के प्रति वफादार बनकर रहें। भारत सरकार की हम पर बहुत बड़ी कृपा है कि उसने 1947 में अलग देश पाकिस्तान दे देने पर भी यहां हिन्दुस्तान में हमें इस्लाम धर्म के अनुसार चलने की सब सुविधाएं दे रखी हैं।
प्रिय भाइयो, आज जो कथित मुसलमान नेता विदेशों के इशारे पर नाचकर अपनी कुर्सी या धन के लिए जातीय दंगे करवा देते हैं, वे ही वास्तव में मुसलमान मजहब को धब्बा लगाकर देश के गद्दार बनकर यहां हमारे लिए कांटे बो रहे हैं। उनसे हमें दूर रहना चाहिए।
मेरा सभी मुसलमान भाइयों से अनुरोध है कि वे इस लेख की अधिक से अधिक उर्दू, हिन्दी और अंग्रेजी में प्रतियां छपवाकर सब मुस्लिमों तक पहुंचाने का कष्ट करें जिससे भारत में शन्ति से रहते हुए मुसलमान तथा इस्लाम मजहब शान्ति से उन्नति कर सकें और आपसे झगड़ों के कारण हमें यहां से उजड़ना न पड़े।
(सर्वोदय जगत में पूर्व प्रकाशित)
आज हमें भारत जैसे हिन्दू प्रधान देश में रहते हुए जिसे स्वतन्त्रता के साथ अपने मजहबी उसूलों के अनुसार चलने अर्थात् मुस्लिम यूनिवर्सिटियां खोलकर खोलकर अपने बच्चों को उर्दू माध्यम से शिक्षा देने, अपनी रीति-रिवाज के अनुसार जीवन यापन करने, निर्भीकता से मजहबी जलसे, जुलूस निकालने, भारत सरकार की ओर से अपने ईद आदि त्यौहारों की छुट्टियां पाने, यहां अपने नाम पर मनपसन्द जमीनें खरीदने, बेरोकटोक व्यापार करने इच्छा के अनुसार अधिक से अधिक मस्जिदें बनाकर इस्लाम का प्रचार करने, अल्पसंख्यक होने के नाते कॉलेजों, चुनावों तथा सरकारी नौकरियों में विशेष सीटें प्राप्त करने और यहां तक कि राजनीति में भाग लेकर राष्ट्रपति तक बनने की जितनी छूट यहां एक गैर-मुस्लिम देश में प्राप्त है उतनी दुनिया के किसी भी गैर-मुस्लिमदेश में नहीं है। यथा चीन में कोई कोई मुसलमान एक से अधिक पत्नी नहीं रख सकता तथा न दो से अधिक बच्चे पैदा कर सकता है। सिंगापुर में तमाम कब्रों को तोड़कर बिजली द्वारा मुर्दों को जलाया जाता है। जापान के मुसलमानों को अपने मुर्दों के लिए कब्रें बनाने की आज्ञा नहीं। इस्राइल आदि देशों में कोई मुसलमान अपने मजहब का प्रचार नहीं कर सकता। नेपाल में कोई मुसलमान किसी भी प्रकार से किसी हिन्दू का मजहब बदलकर उसे मुसलमान नहीं बना सकता। ऐसा करने वाले को कठोर दण्ड मिलता है। साथियो, आज इस हिन्दू-धर्म प्रधान देश में रहते हुए हम मुसलमानों को जितनी सुविधाएं प्राप्त हैं उन सब का एक अंश भी इन सिख, जैन, बौद्ध आदि हिन्दुओं को किसी भी मुसलमान देश में प्राप्त नहीं हैं।
अरब, ईराक, ईरान अथवा पाकिस्तान आदि मुसलमान देशों में कोई सिख, जैन, बौद्ध आदि हिन्दू (सरकारी सहायता से) वहां धार्मिक, सामाजिक या राजनीतिक स्वतन्त्रता या सुविधा प्राप्त नहीं कर सकता। यथा-
1. कोई भी सिख, जैन, बौद्ध आदि हिन्दू मुस्लिम देशों में अपने धर्म एवम् भाषा के अनुसार न तो कोई विद्यालय अथवा विश्वविद्यालय खोल सकता है और न ही भारत में चल रहे अलीगढ़ तथा जामिया आदि विश्वविद्यालयों की तरह हिन्दी माध्यम से पढ़ने की सुविधा ही पा सकता है।
2. हिन्दुस्तान में उर्दू माध्यम से चल रहे आम विद्यालयों तथा मस्जिदों में चल रही हजारों मजहबी पाठशालाओं की तरह न उन मुस्लिम देशों में ऐसा कोई संस्कृत वेद-विद्यालय ही खोल सकता है और न ही किसी सरकारी विद्यालय में अपने धर्म के अनुसार हमारे जुम्मे की तरह मनमानी छुट्टी ही मिल सकती है।
3. कोई भी हिन्दू वहां न तो हिन्दी भाषा में कोई कामकाज कर सकता है और न ही किसी को सरकार की ओर से ईद आदि की तरह श्रीराम नवमी, श्रीकृष्ण अष्ठमी, दशहरा अथवा दीपावली की छुट्टी ही मिल सकती है।
4. हिन्दी अथवा संस्कृत माध्यम से कोई हिन्दू उन मुस्लिम देशों में किसी प्रकार का रेडियो अथवा टीवी का कार्यक्रम नहीं सुन-देख सकता। रामनवमी आदि धार्मिक प्रोग्राम को सुनना या देखना तो दूर अपितु प्रतिदिन काम में आने वाले साधारण समाचार भी अपनी भाषा में नहीं सुन सकता।
5. हम मुसलमानों की तरह अपना राष्ट्रपति चुनना तो दूर अपितु वहां हिन्दुओं के अल्पसंख्यक होने के नाते न तो उन्हें राजनीति में भाग लेने की आज्ञा है और न ही चुनाव लड़ने की। यहां तक कि अल्पसंख्यक के नाम पर किसी स्कूल या कॉलेज में सीट भी नहीं ले सकता।
6. वहीं रह रहे हिन्दुओं के द्वारा उन मुस्लिम देशों में अपने धर्म या संस्था के नाम पर किसी अलग स्थान की मांग करना तो दूर, हिन्दू होने नाते वे एक छोटी-सी सरकारी नौकरी भी प्राप्त नहीं कर सकते।
7. भारत के सरकारी कार्यालयों में लगे हुए चित्रों की भांति मुस्लिम देशों में अपने धर्म या संस्था के नाम पर उन देशों में शेख के चित्र की तरह कोई भारतीय अपने हिन्दू नेता का चित्र नहीं लगा सकता।
8. भारत के राष्ट्रपति भवन में पाकिस्तान के तत्कालीन जनरल जिया-उल-हक के नमाज पढ़ने की तरह कोई भी हिन्दू वहां किसी सामान्य सरकारी स्थान पर यज्ञ-हवन नहीं कर सकता।
9. अपने हिन्दू धर्म के अनुसार बैण्ड बाजे बजाकर वहां न तो कोई भी हिन्दू जलसा-जुलूस ही निकाल सकता है और न ही हमारे यहां ताजियों की तरह अपने धर्म का वहां खुलकर प्रचार ही कर सकता है।
10. वहां के हिन्दुओं को खुलेआम अपने धर्म का पालन करने की छूट नहीं है।
11. हिन्दुस्तान में लाखों हलाल के मांस की दुकानें चल रही हैं पर वहां झटके के मांस पर पूर्ण प्रतिबन्ध है। वहां किसी सिख के द्वारा सुअर के मांस की दुकान भी नहीं खोली जा सकती।
12. कोई हिन्दू वहां गाय जैसे अपने किसी पूज्य पशु के मांस को खाने से किसी को नहीं रोक सकता जो वहां मुसलमानों के द्वारा खुलेआम खाया जाता है।
13. किसी हिन्दू के द्वारा इन तमाम मुस्लिम देशों में खुलेआम अपने धर्म की किताब, वेद, शास्त्र, रामायण, गीता आदि छापना या बेचना तो दूर किसी दुकान पर इन्हें रखा भी नहीं जा सकता। आर्य समाज के ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश पर तो वहां पूर्ण प्रतिबन्ध है।
14. भारत में कश्मीर जैसी मुस्लिम बाहुल्य वाली सरकार की तरह अरब देशों में शराब की दुकान खोलना तो दूर बल्कि यदि कोई पीता हुआ पकड़ा जाए तो उसे कोड़े मारने की कठोर सजा दी जाती है।
15. मैं भारत में अपने बहुत से मुस्लिम भाइयों की कब्रों को कहीं-कहीं तो बड़े-बड़े राजमार्गों को रोकते हुए देखता हूं। पर उन मुस्लिम देशों में कोई हिन्दू किसी एकांत जंगल में भी अपने धर्म के मन्दिर, मठ अथवा गुरुद्वारे के नाम पर डेढ़ ईंट भी नहीं लगा सकता।
16. कोई भी हिन्दू उन मुस्लिम देशों में धोती पहनकर या कृपाण लटकाकर कार्य नहीं कर सकता। बाहर तो क्या इन देशों में वह अपने घर पर भी डरता होगा। आपको यह भी पता होना चाहिए कि सऊदी अरब में कोई खालसा अर्थात् सिख आज भी प्रवेश नहीं पा सकता।
17. कोई हिन्दू, चाहे वह पण्डित हो या सिख, वहां की सेना या पुलिस में नौकरी कर पाना तो दूर अन्य किसी सरकारी कार्यालय में भी नौकरी नहीं पा सकता।
18. कोई हिन्दू वहां पर अपनी फैक्टरी व व्यापार के लिए जमीन नहीं ले सकता, किसी प्रकार का भी स्वतन्त्र व्यापार नहीं कर सकता। कोई भी हिन्दू वहां उसी हालत में व्यापार कर सकता है जब वह किसी स्थानीय मुस्लिम को अपना पार्टनर बनाकर 51 प्रतिशत का हिस्सेदार बनाए।
19. भारत की आजादी के बाद हमारे और हिन्दुओं के बीच अनेक बार गौ हत्या के सवाल पर झगड़े हो चुके हैं। झगड़े कभी भी किसी वर्ग के लिए लाभदायक नहीं होते हैं।
सऊदी अरब में गौ हत्या करने वाले को मौत की सजा मिलती है। ऐसी स्थिति में भी वहां बिना गाय काटे मुसलमानों की शादियां और दावतें सफलतापूर्वक होती हैं। यदि हमारे मुसलमान भाई सऊदी अरब की तरह यहां भी गाय को न मारने का निश्चय कर लें तो भारत में हिन्दू और मुसलमान अमन से जी सकते हैं।
20. देश के कुछ गद्दार लोग यह कहकर भी दंगे भड़काते हैं कि हिन्दुस्तान में इस्लाम मजहब सुरक्षित नहीं है। एक मुसलमान होने के नाते मैं यह समझता हूं कि इस बात से बड़ा कोई दूसरा सफेद झूठ नहीं हो सकता।
इस अफवाह की असलियत का तो इसी से पता चलता है कि 1947 के बाद हिन्दुस्तान में हजारों नयी मस्जिदें, हजारों नये उर्दू माध्यम के स्कूल तथा अलीगढ़, जामिया और देवबन्द जैसे विश्वविद्यालय बेखौफ चल रहे हैं। जबकि दूसरी ओर पाकिस्तान में हिन्दुओं के उंगलियों पर गिने जा सकने वाले 2-4 ही धर्म स्थान ही बचे हैं। जबकि हिन्दुस्तान में ऐसा नहीं है। क्या यह मुस्लिमों पर अत्याचार का प्रतीक है?
21. पाकिस्तान, ईरान, ईराक या सऊदी अरब आदि मुस्लिम देशों की क्रिकेट, फुटबॉल या हाकी आदि की टीमों में कोई भी हिन्दू खिलाड़ी नहीं खेलता। जबकि दूसरी ओर यहां की ज्यादातर खेल टीमों में बहुत से मुसलमान खिलाड़ी हैं। यहां तक कि एशियाड में हाकी की दुर्भाग्यवश हारने वाली टीम के कप्तान जफर इकबाल भी मुसलमान ही थे। इससे स्पष्ट है कि भारत में मुसलमानों को कितने अधिकार प्राप्त हैं।
उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए सब मुसलमानों को चाहिए कि अपनी सर्वांगीण उन्नति के लिए हिन्दुस्तान के प्रति वफादार बनकर रहें। भारत सरकार की हम पर बहुत बड़ी कृपा है कि उसने 1947 में अलग देश पाकिस्तान दे देने पर भी यहां हिन्दुस्तान में हमें इस्लाम धर्म के अनुसार चलने की सब सुविधाएं दे रखी हैं।
प्रिय भाइयो, आज जो कथित मुसलमान नेता विदेशों के इशारे पर नाचकर अपनी कुर्सी या धन के लिए जातीय दंगे करवा देते हैं, वे ही वास्तव में मुसलमान मजहब को धब्बा लगाकर देश के गद्दार बनकर यहां हमारे लिए कांटे बो रहे हैं। उनसे हमें दूर रहना चाहिए।
मेरा सभी मुसलमान भाइयों से अनुरोध है कि वे इस लेख की अधिक से अधिक उर्दू, हिन्दी और अंग्रेजी में प्रतियां छपवाकर सब मुस्लिमों तक पहुंचाने का कष्ट करें जिससे भारत में शन्ति से रहते हुए मुसलमान तथा इस्लाम मजहब शान्ति से उन्नति कर सकें और आपसे झगड़ों के कारण हमें यहां से उजड़ना न पड़े।
(सर्वोदय जगत में पूर्व प्रकाशित)