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मंगलवार, 8 जुलाई 2008

लोकार्पण
















हिन्दी साहित्य मन्थन के तत्वावधान में चार पुस्तकों का लोकार्पण
ग़ज़ल में तख़ल्लुस को सार्थक करना काफी महत्वपूर्ण
-डा. शेरजंग गर्ग
हिंदी के वरिष्ठ रचनाकार डा. शेरजंग गर्ग का कहना है कि अमूमन ग़ज़लकार कोई न कोई तख़ल्लुस रख लेते हैं, लेकिन उसको साकार नहीं कर पाते हैं। कम भी ऐसे ग़ज़लगो हुए हैं जिन्होंने अपने तख़ल्लुस को सार्थक किया है। गा़लिब और मीर जैसे महान शायर भी इसको सार्थक करने में उतने सफल नहीं हो सके। पूरे़ ग़ज़लकारों पर नजर दौड़ाई जाए तो बलवीर सिंह रंग एक ऐसे ग़ज़लकार हैं, जिन्होंने अपने रंग उपनाम को सार्थक किया है। उसी प्रकार श्री देवेन्द्र माँझी ने भी अपने माँझी उपनाम को तमाम उपमाओं में पिरोकर ग़ज़ल को एक नई दिशा देने का काम किया है। माँझी को ग़ज़ल की व्याकरण और काफिया-रदीफ की मुक्कमल जानकारी है, लिहाजा वह औरों से अलग दिखता है।
डा. गर्ग साहित्य अकादेमी सभागार में आयोजित पुस्तक लोकार्पण सामारोह अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। हिंदी साहित्य मन्थन और मंजुली प्रकाशन के बैनर तले आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह मैं एक साथ चार पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। जिसमें इशारे हवाओं के, समन्दर के दायरे (गजल संग्रह), झुकी पीठ पर बोझ (दोहा संकलन)- तीनों के रचनाकार श्री देवेन्द्र माँझी और तीन कदम (गजल संग्रह) जिसका संपादन श्री धीरज चौहान ने किया है, का लोकार्पण किया गया। तीन कदम में तीन गजलकारों, श्री अशोक वर्मा, श्री देवेन्द्र माँझी और श्री आर.के. पंकज की गज़लें हैं।
इन पुस्तकों का विमोचन डा. शेरजंग गर्ग ने किया। इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए श्री रमा शंकर श्रीवास्तव ने कहा कि तीन कदम का मिजाज, शायर की रवानगी प्रशंसनीय है। काल्पनिक उड़ान वाली रचनाएं पाठक को प्रभावित नहीं कर पाती हैं, इसको ध्यान में रखकर ही तीनों रचनाकारों ने कलम चलायी है। वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक डा. राजेन्द्र गौतम ने कहा कि सहयोगी संकलन निकाले जाने चाहिए, इससे एक नयी प्रेरणा मिलती है। देवेंद्र माँझी की पुस्तकों पर विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने आगे कहा कि माँझी का जूझना साबित करता है कि उन्होंने जिंदगी को काफी शिद्दत के साथ जिया है। मांझी जीवन-संग्राम के एक जुझारू नेता हैं और उनके संघर्ष की आंच उनकी ग़ज़लों में देखने को मिलती है।
प्रसिद्ध रचनाकार डा. लक्ष्मी शंकर वाजपेयी ने माँझी को एक आम आदमी का रहनुमा बताया और कहा कि वह आम आदमी की पीड़ा-घुटन-एहसास को रूपायित करते हैं। जो बात वे करते हैं वे हर दौर में किसी न किसी रूप में प्रासंगिक होती है और यही बात किसी भी रचनाकार को नयी ऊंचाई और पाठक की डायरी को समृद्ध करती है। इसके अतिरिक्त डा. अशोक लव और डा. हरीश अरोड़ा ने भी तीनों रचनाकरों की रचनाओं के बारे में अपने विचार रखते हुए कि मिजाज़ में थोड़ा अलगाव होते हुए भी तीनों की मंजिल एक है और तीनों का कथ्य भी। इसी कारण तीन कदम का प्रकाशन संभव हो पाया। कार्यक्रम के दौरान मंच का संचालन श्री सुरेश यादव ने किया।
अपनी रचनाओं की बाबत स्वयं माँझी ने कहा कि हवा के रुख और उसकी चाल के अंदाज पल-पल नये-नये इशारे करते रहते हैं और जो लोग इन इशारों की जुबां को समझ जाते हैं, वे जीवन में सफलता प्राप्त कर लेते हैं तथा जो इन्हें समझने में नाकाम रहते हैं, वे असफलता के गहन अंधेरों में खो से जाते हैं। सचमुच हवा हवा है और इसके इशारे यक्ष-प्रश्नों की तरह चुनौती देते रहते हैं हमारी बुद्धिमत्ता को। मैंनें भी बस इन्हीं चुनौतियों को स्वीकार करने का प्रयास किया है अपनी ग़ज़लों में।

सुभाष चन्द्र, नयी दिल्ली

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