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शुक्रवार, 21 मई 2010

प्रशंसा

ठीक नहीं प्रशंसा में कंजूसी
प्रशंसा के अनेक दूरगामी परिणाम भी प्राप्त होते हैं। अपने आसपास थोड़ा ध्यान दें तो हम पाते हैं कि अनेक लोग पूरी निष्ठा, ईमानदारी, बहादुरी, कुशलता, सूझबूझ, कल्पनाशीलता, रचनात्मकता आदि के साथ सोंपा गया कार्य कर रहे हैं। परन्तु प्रायः उनकी प्रशंसा नहीं की जाती। हां, यदि काम करते समय यदि कोई छोटी-सी भूल हो जाए तो दसके लिए तुरन्त टोक दिया जाता है या अन्य हल्की या कठोर प्रतिक्रिया सामने आ जाती है।
मनोवैज्ञानिक और शिक्षाविद मानते हैं कि सच्ची प्रशंसा, उचित सम्मान और प्रोत्साहन हमारी नयी पीढ़ी के लिए ही नहीं अन्य लोगों के लिए भी प्रगति तथा हित की दृष्टि से उपयोगी है। अध्यापक, अभिभावक, नियोक्ता आदि भी इस बात से अनभिज्ञ नहीं हैं। प्रशंसा और प्रोत्साहन के अभाव ने अनगिनत प्रतिभाओं को कुंठित किया है। प्रशंसा करते समय उचित सावधानी और अपने विवेक का उपयोग करना औरों के लिए हितकर होगा। अपने किसी स्वार्थ के लिए किसी व्यक्ति की झूठी प्रशंसा करना एक घटिया काम है। प्रशंसा वास्तविक और सच्ची होनी चाहिए।

हमारे घर-परिवार, विभिन्न कार्य स्थलों, विद्यालयों आदि यानी लगभग हर जगह प्रशंसा करने में बहुत ज्यादा कंजूसी बरती जाती है। यह अच्छी बात नहीं है। प्रशंसा करने में कुछ अतिरिक्त खर्च नहीं होता जबकि अनेक दृष्टियों से यह हमारे और औरों के लिए लाभदायक ही सिद्ध होती है। प्रसंशा के अनेक दूरगामी परिणाम भी प्राप्त होते हैं। अपने आसपास थोड़ा ध्यान दें तो हम पाते हैं कि अनेक लोग पूरी निष्ठा, ईमानदारी, बहादुरी, कुशलता, सूझबूझ, कल्पनाशीलता, रचनात्मकता आदि के साथ सोंपा गया कार्य कर रहे हैं। परन्तु प्रायः उनकी प्रशंसा नहीं की जाती। हां, काम करते समय उनसे यदि कोई छोटी-सी भूल हो जाए तो उसके लिए तुरन्त टोक दिया जाता है या अन्य हल्की या कठोर प्रतिक्रिया सामने आ जाती है। सम्भव है आपने भी एकाधिक बार ऐसी स्थितियों का सामना किया हो। वस्तुतः ऐसा करना ठीक नहीं है। अच्छे कार्य या व्यवहार के लिए प्रशंसा करनी ही चाहिए।



ऐसा भी होता है कि अनेक बार संघर्ष और प्रयास करने पर भी सफलता नहीं मिलती, ऐसे में सम्बन्धित व्यक्ति की यदि प्रशंसा न भी की जाए तो उसका उत्साह बढ़ाते हुए फिर प्रयास करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इतिहास ऐसे लोगों के कार्यों से भरा पड़ा है जिन्होंने जीवनभर खूब काम किया। उन्हें तब पर्याप्त महत्व नहीं दिया गया। उनके मरने के बाद लोगों ने उनकी जमकर प्रशंसा की और उन्हें महान बना दिया। ऐसे अनेक वैज्ञानिक, संगीतकार, चित्रकार, गायक, कवि, लेखक आदि अपनी मृत्यु के उपरान्त ही प्रशंसा पा सके और विश्वप्रसिद्ध हुए। उनके कार्यों और उपलब्धियों को लोगों ने मुक्तकण्ठ से सराहा और उनकी सफलताओं से नयी पीढ़ी को प्ररित होने के लिए कहा। हमारे आसपास भी ऐसे प्रतिभावान युवाओं की कमी नहीं है जो बहुत कुछ करना चाहते है और वे सक्षम भी हैं। पर लोगों के द्वारा की गयी आलोचना, उपहास, ईर्ष्या आदि उनकी गति में बाधा बन जाते है।

जहां हम दूसरों की प्रशंसा करने और उन्हें प्रेरित करने में हिचकिचाते हैं वहीं उनकी निन्दा करने, टांग खींचने, आलोचना करने, कोसने, हतोत्साहित करने, टीकाटिप्पणी करने आदि में कभी पीछे नहीं रहते। इस काम के लिए प्रायः हमारे पास समय की कमी भी नहीं होती। हम किसी व्यक्ति के किसी कार्य या व्यवहार के बारे में नापसन्द होने पर जिस तत्परता से अप्रसन्नता के साथ प्रतिक्रिया देते हैं तो बड़ा ही स्पष्ट ढंग अपनाते हैं। सोचिए, उतनी ही तत्परता से हम सकारात्मक भूमिका निभाएं तो परिणाम निःसन्देह बेहद सुखद होंगे। हमें स्वयं अपने भीतर पश्चाताप की बजाय अनूठे सुख की अनुभूति होगी। सो मुसकराकर देखिए, औरों का समर्थन और प्रशंसा कीजिए और जीवन को और सुन्दर बनाइए। अपने मित्रों, सहयोगियों, सहकर्मियों सहित सभी की आवश्यकतानुसार उचित अवसर पर प्रशंसा कीजिए। क्या आप स्वयं यह जानना नहीं चाहते कि लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं? ठीक इसी प्रकार और लोग भी यह जानना चाहते हैं कि आप उनके बारे में क्या सोचते हैं? कोई व्यक्ति प्रशंसा के योग्य है तो उदार बनिए और सही समय पर उसकी प्रशंसा करने अब कंजूसी बरतना छोड़ ही दीजिए।

• टी.सी. चन्दर 

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