खोज

सोमवार, 15 अगस्त 2011

खेल











असली खेल
लोकतन्त्र में बम-बम करते
लुच्चे और बदमाश हैं,
रहते हैं कानून से ऊपर
समझें खुद को खास हैं।

बीड़ी की औकात नहीं थी
अब तो बीड़ी व्यर्थ है,
नामी-बेनामी के मालिक
जग है मिथ्या सत्य अर्थ है।

पाएं इशारे मारें ठुमके
यही तो असली खेल है,
करें दलाली उन लोगों की
जिनके हाथ नकेल है।

भूख से मरता कोई न दिखता
ये सावन के अन्धे हैं,
घपले-घोटालों में रमते
क्या-क्या इनके धन्धे हैं।

पांच सितारा जीवन इनका
गांधी इनकी जेब में,
गली-गली भाई दारू बिकती
दारूबन्दी गई जेल में।

महंगाई नहीं इन्हें सताती
इनके धन्धे नाना हैं,
अपना वेतन अपनी सुविधा
बिना युद्ध के हां-हां है।

जन-जन के विश्वास को तोड़ा
हृदयहीन बकवास हैं,
हाथ तिरंगा इनके आया
तन-मन मारे बास है।
चन्दर
दरसल डर जोंकपाल हो जाने का है!
Cartoon  © T.C. Chander



https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhAkPliLoUgH_NUIKORWp0oKg3APIyZ6C6Zs95i6ba7TaDEWw0A_qVGSn8sbOaC3lkHSSegxxzViNMpzdECWbvjJ5e8Pp1bx1P27Gzk9Svxg7Suvb465Fu0JzyDEghxh1_FQS24wD7n83Q/s1600-r/logo+yu+new+970.jpg

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

सहयात्रा में पढ़िए