खोज

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

सीनाजोरी

http://t3.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcQGe9MXgvFjU-weVaN7GO8_uyoMtubiFC533qHm0xgXI5YTpXH0सर्वोच्च न्यायालय में दिल्ली पुलिस ने अपनी पोल खुद ही खोल दी है। उसने गृहमंत्री पी. चिदंबरम पर छाता तान दिया है। उसने अदालत से कहा है कि गृह मंत्रीजी बड़े चिंतित हो उठे थे। रामलीला मैदान में 50 हजार लोगों की समाई थी लेकिन एक लाख से भी ज्यादा लोग आ गए थे और आते ही जा रहे थे। ऐसी हालत में गृहमंत्री जी ने जो निर्णय कि उसकी अनुमति संविधान देता है। बेचारे पुलिसवालों को चिदंबरम के अफसरों ने जो पट्टी पढ़ाई, वही उन्होंने अदालत के सामने उगल दी। 
सर्वोच्च न्यायालय के सामने दिल्ली पुलिस को कैसी सफेद झूठ बोलनी पड़ रही है। यह उसकी मजबूरी है। वह भी उसकी मजबूरी थी कि उसे 4 जून को बाबा रामदेव के भक्तों पर हमला करना पड़ा। मजबूरी को छिपाने की इस मजबूरी पर किसे तरस नहीं आएगा? हमारे नेताओं से ज्यादा खूंखार प्राणी भारत में और कौन हैं? इन खूंखार नेताओं के सामने बेचारे पुलिसवालों की हैसियत क्या है? नेताओं का इशारा पाते ही उन्हें उन लोगों पर भी टूट पड़ना होता है, जो बिल्कुल बेकसूर और मासूम होते हैं। नेताओं के इशारे पर ही हमारी पुलिस हत्यारों और बलात्कारियों पर छाता तान देती है। उसने यही काम 4 जून को रामलीला मैदान में किया।
सर्वोच्च न्यायालय में दिल्ली पुलिस ने अपनी पोल खुद ही खोल दी है। उसने गृहमंत्री पी. चिदंबरम पर छाता तान दिया है। उसने अदालत से कहा है कि गृह मंत्रीजी बड़े चिंतित हो उठे थे। रामलीला मैदान में 50 हजार लोगों की समाई थी लेकिन एक लाख से भी ज्यादा लोग आ गए थे और आते ही जा रहे थे। ऐसी हालत में गृहमंत्री जी ने जो निर्णय कि उसकी अनुमति संविधान देता है। बेचारे पुलिसवालों को चिदंबरम के अफसरों ने जो पट्टी पढ़ाई, वहीं उन्होंने अदालत के सामने उगल दी। पुलिस के बयान से यह रहस्य खुल गया कि रामलीला मैदान के भूखे-प्यासे सत्याग्रहियों पर जानलेवा हमला किसने करवाया?
दुनिया के इतिहास में एक लाख लोगों का सामूहिक अनशन पहले कभी नहीं हुआ। गांधी जी के जमाने में भी नहीं हुआ। यदि इस अनशन की पूर्णाहुति ससम्मान होती तो सारे विश्व में भारत का माथा ऊँचा होता। अहिंसक आंदोलन का विश्व-प्रतिमान कायम होता। इस सरकार को भी जबर्दस्त श्रेय मिलता लेकिन हमारे केन्द्रीय मंत्रिमंडल में बैठे कुछ अंहकारी, नौसिखिए और नौकरीबाज नेताओं ने सरकार की इज्जत धूल में मिला दी। कांग्रेस जैसी महान पार्टी को, जो अपने अहिंसक आंदोलनों के कारण सारे विश्व में सम्मानित हुई, इन तथाकथित नेताओं ने कलंकित कर दिया। पुलिस ने उनका अंधा आदेश माना और आम जनता ने पलटकर उन पर वार नहीं किया, इसका मतलब यह नहीं कि वे सस्ते में छूट गए। भारत के करोड़ों लोगों ने उस दिन खून का घूंट पिया है। वे दुष्टों को दंडित किए बिना नहीं रहेंगे। देश की सर्वोच्च अदालत को आगे बढ़कर सरकार के इस कुकर्म पर आखिर उंगली क्यों उठानी पड़ी है।
प्रधानमंत्री ने उस रावण लीलापर खेद जरूर प्रगट किया। वे मगर के आंसू थे लेकिन आज तक वे और उनके मंत्री देश और अदालत को यह नहीं बता पाए कि हमारी इस नखदंतहीन सज्जन सरकार को इतनी भंयकर गुंडागर्दी करने की जरूरत क्यों पड़ गई? अदालत ने बिल्कुल सटीक सवाल पूछा है कि पुलिस ने पांच जून की सुबह तक इंतजार क्यों नहीं किया? गहरी नींद में सोए हुए, भूखे-प्यासे एक लाख लोगों पर उसने मध्यरात्रि में हमला क्यों किया? संन्यासिनों, ब्रह्मचारिणियों, वेदपाठी पंडितों, किशार छात्रों, वृद्ध वानप्रस्थितियों-किसी को भी नहीं बख्शा गया। यदि भारत में सचमुच के राजनीतिक दल होते तो यह सरकार पांच जून की सुबह ही गिर जाती। जरा याद करें, नवंबर, 1966 को। गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा को दूसरे दिन सुबह ही इस्तीफा देना पड़ा था, गौरक्षा-आंदोलन पर हिंसक-प्रहार करने के लिए। खुद कांग्रेस पार्टी में बगावत हो गई थी। यदि भारती की जगह कोई बौद्ध या ईसाई या मुस्लिम राष्ट्र और उसके साधुओं पर इस तरह का प्रहार होता तो जनता नेताओं की खाल खींच लेती।
हमारी पुलिस अपने मालिकों को बचाने के लिए अपने पाप का ठीकरा बाबा रामदेव के माथे पर फोड़ रही है। वह उस गुंडागर्दीके लिए रामदेवजी को जिम्मेदार ठहरा रही है। चोरी और सीनाजोरी कर रही है। बाबा रामदेवी की गलती यही है कि वे इन धूर्त नेताओं के चकमे में आ गए और उनसे 4 जून की शाम तक बात करते रहे। वे उन्हें आदरणीय और विश्वसनीय समझते रहे। हमारी सबसे बड़ी अदालत को जड़ तक पहुंचना होगा। बेचारे पुलिसवाले उसे क्या जवाब देंगे? उसके कटघरे में तो उन सब मंत्रियों को खड़ा किया जाना चाहिए, जिन्होंने बाबा रामदेव को धोखा दिया और अपनी सरकार की कब्र खोद दी। 
POSTED BY: DR.VAIDIK ON: NOVEMBER 27 2011 • CATEGORIZED IN: ARTICLES 
साभार: http://www.vpvaidik.com

सोमवार, 28 नवंबर 2011

धर्मांतरण

ईसाई धर्मांतरण को रोकने का इस्लामी तरीका
हिन्दुओं के बस की बात नहीं यह (सन्दर्भ- कश्मीर में धर्मान्तरण)
 http://in.christiantoday.com/files/2011_11/_6851_a2593.jpgघटना इस प्रकार है कि, कुछ समय पहले श्रीनगर स्थित चर्च के रेव्हरेंड (चन्द्रमणि खन्ना) यानी सीएम खन्ना(?) (नाम पढ़कर चौंकिये नहीं… ऐसे कई हिन्दू नामधारी फ़र्जी ईसाई हमारे-आपके बीच मौजूद हैं) ने घाटी के सात मुस्लिम युवकों को बहला-फ़ुसलाकर उन्हें इस्लाम छोड़ ईसाई धर्म अपनाने हेतु राजी कर लिया। जब यह मामला खुल गया तो 19 नवम्बर को रेव्हरेण्ड खन्ना को श्रीनगर स्थित मुख्य मुफ़्ती बशीरुद्दीन ने शरीयत कोर्ट(?) में जवाब-तलब के लिए बुलवाया। खन्ना साहब से चार घण्टे तक पूछताछ(?) की गई। उन सभी सात मुस्लिम युवकों की पुलिस ने जमकर पिटाई की, जिन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार किया था, फ़िर उन युवकों से रेव्हरेण्ड खन्ना के खिलाफ़ कबूलनामा लिखवा लिया गया कि उसने पैसों का लालच देकर उन्हें ईसाई धर्म के प्रति बरगलाया (यही सच भी था)।
(Know more about Shariah Court: http://expressbuzz.com/opinion/columnists/sharia-courts-rule-in-jk-secularists-keep-mum/337356.html)
http://www.persecution.in/files/u8/DSC_3998_crop-web.jpgइतना सब हो चुकने के बाद राज्य की धर्मनिरपेक्ष सरकार ने अपना रोल प्रारम्भ किया। बशीरुद्दीन की धमकी(?) के बाद सबसे पहले तो रेव्हरेण्ड खन्ना को गिरफ़्तार किया गया…। चूंकि गुजरात, तमिलनाडु, मध्य्रप्रदेश की तरह जम्मू-कश्मीर में धर्मान्तरण विरोधी कानून नहीं है (क्योंकि कभी सोचा ही नहीं था, कि मुस्लिम बहुल इलाके में कोई पादरी इतनी हिम्मत करेगा), इसलिये अब उस पर 153A तथा 295A की धाराएं लगाई गईं अर्थात धार्मिक वैमनस्यता फ़ैलाने, नस्लवाद भड़काने और अशांति फ़ैलाने की, ताकि चन्द्रमणि खन्ना को आसानी से छुटकारा न मिल सके… क्योंकि उसने इस्लाम के अनुसार मुस्लिमों का धर्म परिवर्तन करवा कर सिर्फ़ अपराध नहीं बल्कि पाप किया था। मौलाना बशीरुद्दीन ने कहा है कि शरीयत अपना काम करेगी, और सरकार को अपना काम करना होगा…, यह एक गम्भीर मसला है और इस्लाम में इससे निपटने के कई तरीके हैं। 
http://www.persecution.in/files/u8/Kashmir_protest.jpgइन मुस्लिम युवकों के धर्मान्तरण की वीडियो क्लिप यू-ट्यूब पर आने के बाद पादरी खन्ना और वेटिकन के खिलाफ़ घृणा संदेशों की मानो बाढ़ सी आ गई, जिसमें वादा किया गया है कि यदि खन्ना को उचित सजा नहीं मिली तो कश्मीर से मिशनरियों के सभी स्कूल, इमारतें और चर्च इत्यादि जला दिए जाएंगे… मजे की बात यह है कि धमकी भरे ईमेल कश्मीर के साथ-साथ पाकिस्तान से भी भेजे जा रहे हैं।  
यूट्यूब पर वीडियो देखें: http://www.youtube.com/watch?v=REq2mZjRN6c feature=player_embedded#! 
समूचे मामले का तीन तरह से विश्लेषण किया जा सकता है, और तीनों ही विश्लेषण तीन विभिन्न समूहों को पूरी तरह बेनकाब करते हैं…
१. सबसे पहले बेनकाब होते हैं तमाम ईसाई संगठन तथा सजन जॉर्ज एवं जॉन दयाल जैसे स्वघोषित ईसाई बुद्धिजीवी… (लेकिन असलियत में धर्मान्तरण के समर्थक घोर एवेंजेलिस्ट)। भाजपा शासित राज्यों सहित पूरे देश में मिशनरी गतिविधियों के जरिये दनदनाते हुए दलितों-आदिवासियों और गरीब हिन्दुओं को ईसाई धर्म में खींचने-लपेटने में लगे हुए ईसाई संगठन, कश्मीर के इस मसले पर शुरुआत में तो चुप्पी साध गये, फ़िर धीमे-धीमे सुरों में इन्होंने विरोध शुरु किया। प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति और सोनिया गाँधी के समक्ष, धर्मान्तरण की गतिविधि संविधान सम्मत है…, कश्मीर में जो हुआ वह गलत और असंवैधानिक तथा धार्मिक स्वतन्त्रता का हनन है… तथा कश्मीर के तालिबानीकरण पर चिंता जताते हैं… जैसे वाक्यों और घोषणाओं से शिकायत करते रहे। लेकिन इस्लामिक मामलों में और खासकर कश्मीर के मामले में प्रधानमंत्री की क्या औकात है कि वे कुछ करें… सो कुछ नहीं हुआ। फ़िलहाल डायोसीज़ चर्च और वेटिकन के उच्चाधिकारी रेव्हरेण्ड खन्ना के साथ हुए सलूक पर सिर्फ़ प्रलाप भर कर रहे हैं, कुछ कर सकने की उनकी न तो हिम्मत है और न ही औकात…। यह बात पहले भी केरल में साबित हो चुकी है, जब एक ईसाई प्रोफ़ेसर का हाथ, कुछ इस्लामिक पागलों ने काट दिया था… तब भी भारतीय चर्च, हिन्दुओं को सरेआम ईसाई बनाते एवेंजेलिस्ट और वेटिकन के सारे गुर्गे, सिमी द्वारा संचालित इस्लामी जेहाद के सामने दुम दबाकर घर बैठ गये थे…। तात्पर्य यह कि ईसाई संगठनों द्वारा किये जाने वाले धर्मान्तरण सम्बन्धी सारे संवैधानिक अधिकार(?) और दादागिरी सिर्फ़ हिन्दुओं पर ही चलती है, जैसे ही कोई इस्लामी जेहादी इन्हें इनकी औकात बताता है तो ये चुप्पी साध लेते हैं या मन मसोसकर रह जाते हैं…
पता कीजिये कि गरीबों की सेवा(?)  के नाम पर चल रही कितनी मिशनरियाँ, मुस्लिम बहुल इलाके में अपना कामकाज कर रही हैं?  क्या मुसलमानों में गरीबी नहीं है? तो फ़िर मिशनरी संस्थाओं को "सेवा" के लिए दलित-आदिवासी बस्तियाँ ही क्यों मिलती हैं?
२. इस घटना से इस्लाम के तथाकथित स्वयंभू ठेकेदार भी बेनकाब होते हैं, क्योंकि जहाँ एक तरफ़ उन गरीब मुस्लिम नौजवानों (जो पैसे के लालच में ईसाई बने), उन पर फ़िलहाल कोई कार्रवाई नहीं की जा रही, जबकि रेव्हरेण्ड खन्ना को रगड़ा जा रहा है। इसी प्रकार इस्लाम की अजब-गजब परिभाषाओं के अनुसार जो भी व्यक्ति पवित्र इस्लाम में प्रवेश करता है, उसका स्वागत है… इसमें आने वाले और लाने वाले दोनों को ईनाम दिया जाता है (जैसा कि लव-जेहाद के कई मामलों में कर्नाटक व केरल पुलिस ने पाया है कि मुस्लिम लड़कों को हिन्दू लड़की फ़ँसा कर लाने पर दो-दो लाख रुपये तक दिये गये हैं)। वहीं दूसरी ओर, पाखण्ड की इन्तेहा यह है कि बशीरुद्दीन साहब फ़रमाते हैं कि इस्लाम छोड़कर जाना गुनाह-ए-अज़ीम (महापाप) है…। यानी इस्लाम में आने वाले को ईनाम और इस्लाम छोड़कर जाने वाले को कठोर दण्ड… यह है शांति का धर्म (Religion of Peace)?
३. बेनकाब होने की श्रृंखला में तीसरा नम्बर आता है, हमारे सुपर ढोंगी सेकुलरों और वामपंथी बुद्धिजीवियों(?) का…। पाठकों को याद होंगे दो मामले, पहला कोलकाता के रिज़वानुर रहमान और उद्योगपति अशोक तोडी की लड़की का प्रेम प्रसंग (Search - Ashok Todi and Rizvanur Rehman Case) एवं कश्मीर में अमीना और रजनीश का प्रेम प्रसंग (Search - Ameena and Rajneesh Love story of Kashmir)। झोला छाप वामपंथी बुद्धिजीवियों एवं पाखण्ड से लबरेज धर्मनिरपेक्षों ने रिज़वानुर रहमान की हत्या पर कैसा रुदालीगान किया था, जबकि कश्मीर में इस्लामी उग्रवादियों द्वारा रजनीश की हत्या पर चुप्पी साध ली थी…। ये लोग ऐसे ही गिरे हुए होते हैं, उदाहरण - गोधरा ट्रेन जलाने पर कपड़ा-फ़ाड़ चिल्लाना, लेकिन मुम्बई की राधाबाई चाल में हिन्दुओं को जलाने पर चुप्पी…, फ़िलीस्तीन के मुसलमानों के लिये बुक्का फ़ाड़कर रोना, लेकिन कश्मीरी पण्डितों के मामले में चुप्पी…, गुजरात के दंगों को नरसंहार बताना, लेकिन सिखों के नरसंहार के बावजूद कांग्रेस की गोद में बैठना इत्यादि-इत्यादि। इनका ऐन यही रवैया, कश्मीर के इस धर्मान्तरण मामले को लेकर भी रहा… आए दिन भाजपा-संघ को अनुशासन, संविधान, अल्पसंख्यकों के अधिकारों आदि पर भाषण पिलाने वाले महेश भट्ट, शबाना आज़मी और तीस्ता नुमा सारे बुद्धिजीवी अपनी-अपनी खोल के अन्दर दुबक गये…। किसी ने भी बशीरुद्दीन और उमर अब्दुल्ला सरकार को पाठ पढ़ाने की कोशिश नहीं की, क्योंकि उन्हें मालूम है कि यदि वे इस्लाम के खिलाफ़ एक शब्द भी बोलेंगे तो उनका पिछवाड़ा लाल कर दिया जाएगा…। जॉन दयाल, सीताराम येचुरी अथवा सैयद शहाबुद्दीन साहब ने एक बार भी नहीं कहा, कि कश्मीर में पादरी खन्ना के खिलाफ़ जो भी कार्रवाई हो वह भारत के संविधान के अनुसार हो… शरीयत कोर्ट कौन होता है फ़ैसला करने वाला? लेकिन ज़ाहिर है कि जिसके पास ताकत है, उसी की बात चलेगी और ठोकने-लतियाने तथा हाथ काटने की ताकत फ़िलहाल इस्लाम के पास है, जबकि हिन्दू ठहरे नम्बर एक के बुद्धू, सेकुलर और गाँधीवादी…, उनके खिलाफ़ तो कुछ भी (जी हाँ, कुछ भी) किया जा सकता है…। क्योंकि भाजपा में भी अब कांग्रेस बी टीम बनने की होड़ चल पड़ी है, तो रीढ़ की हड्डी सीधी करके धार्मिक मामलों पर भाजपा के नेता खुलकर क्यों और कैसे बोलें? जबकि स्थापित तथ्य यह है कि विशेष परिस्थितियों (गुजरात एवं मध्यप्रदेश के चन्द चुनावों) को छोड़कर चाहे भाजपाई नेता, सार्वजनिक रूप से मुस्लिमों के चरण धोकर भी पिएं तब भी वे भाजपा को वोट देने वाले नहीं हैं… फ़िर भी भाजपा को यह पूछने में संकोच(?) हो रहा है कि शरीयत बड़ी या भारत का संविधान?
प्रस्तुत घटना यदि किसी भाजपा शासित राज्य में हुई होती तथा बजरंग दल अथवा श्रीराम सेना ने इस घटना को अंजाम दिया होता, तो अब तक भारत के समूचे मीडियाई भाण्डों, नकली सेकुलरिज़्म का झण्डा उठाये घूमने वाले बुद्धिजीवियों सहित प्रगतिशील(?) वामपंथियों ने कपड़े फ़ाड़-फ़ाड़कर, आसमान सिर पर उठा लिया होता… परन्तु चूंकि यह घटना कश्मीर की है तथा इसमें इस्लामी फ़तवे का तत्व शामिल है, इसलिए दोगले सेकुलरों और फ़र्जी वामपंथियों के मुँह पर बड़ा सा ताला जड़ गया है… राष्ट्रीय(?) मीडिया की तो वैसे भी हिम्मत और औकात नहीं है कि वे इस घटना को कवरेज दे सकें…।
वाकई, सेकुलरिज़्म और गाँधीवाद ने मानसिक रूप से भारतवासियों (सॉरी… हिन्दुओं) को इतना खोखला और डरपोक बना दिया है, कि वे वाजिब बात का विरोध भी नहीं कर पाते… 
========================= 
नोट :- ताज़ा समाचार यह है कि "शरीयत कोर्ट" ने कश्मीर विवि के कुछ प्रोफ़ेसरों को भी उसके समक्ष पेश होने का नोटिस जारी किया है, क्योंकि खन्ना ने स्वीकार किया है कि मुस्लिम युवकों का धर्मान्तरण करवाने में इन्होंने उसकी मदद की थी। दूसरी तरफ़ पादरी खन्ना की पत्नी और बेटे ने उनके "गिरते स्वास्थ्य" को देखते हुए उमर अब्दुल्ला से उन्हें रिहा करने की अपील की है। पत्नी ने एक बयान में कहा है कि कश्मीर में आए भूकम्प के दौरान पादरी खन्ना और चर्च ने सेवाभाव से गरीबों की मदद की थी, उनके पुनर्वास में विभिन्न NGOs के साथ मिलकर काम किया था… (इस स्वीकारोक्ति का अर्थ समझे आप? थोड़ा गहराई से विचार कीजिए, समझ जाएंगे)।
फ़िलहाल तो इस मामले में "धर्मनिरपेक्षों" और "स्वयंभू मानवाधिकारवादियों" की साँप-छछूंदरनुमा हालत, दोगलेपन और पाखण्ड पर तरस खाइए और मुस्कुराइए…। 
=========================
http://www.jihadwatch.org/2011/11/indian-christians-call-for-halt-to-talibanization-of-kashmir-after-pastors-arrest-for-baptizing-musl.html
यहाँ उपयोग किये गए फोटो के लिए आभार, माध्यम: google
सामग्री लिंक: सुरेश चिपलूणकर

रविवार, 27 नवंबर 2011

चांटा


अहिंसा का प्रतीक सपाट 'चांटा'



ये वही लोग हैं जो आम जनता को 'रोटी' मांगने पर न्याय व्यवस्था की 'लाठी' से पीटते हैं. भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ रामलीला मैदान में बैठे 'आम आदमी' को आधी रात को उठा कर पीट-पीट कर दौड़ाते हैं और दौड़ा-दौड़ा कर पीटते हैं. क्या वह 'हिंसा ' नहीं थी. सारी संसद आज शरद-चांटे से विचलित है और अन्ना को नया गाँधीवाद ' बस एक ही चांटा' घड़ने पर कोस रही है. कुछ तो इसे देश में अराजकता फ़ैलाने का षड्यंत्र भी मान रहे हैं.  
अहिंसा के प्रतीक चांटे की गूँज...आज चारों दिशाओं में फैली हुई है. जब से हरविंदर सिंह ने 'महंगाई के टेढ़े गाल' पर सपाट चांटा जड़ा है...सारा देश प्रतिक्रियाऑ के दो खेमों में बाँट गया है. एक तो वो हैं जो अपने आप को गांधीजी के आदर्शों का ठेकेदार मानते हैं और उनके अहिंसा परमो-धर्म के परचम को थामे हुए....चांटे को ' राष्ट्र के खिलाफ' हिंसा ही नहीं बल्कि विश्व की सारी की सारी मानवता के खिलाफ हिंसा से अलंकृत कर रहे हैं.
ये वही लोग हैं जो आम जनता को 'रोटी' मांगने पर न्याय व्यवस्था की 'लाठी' से पीटते हैं. भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ रामलीला मैदान में बैठे 'आम आदमी' को आधी रात को उठा कर पीट-पीट कर दौड़ाते हैं और दौड़ा-दौड़ा कर पीटते हैं. क्या वह 'हिंसा ' नहीं थी . सारी संसद आज शरद- चांटे से विचलित है और अन्ना को नया गाँधीवाद ' बस एक ही चांटा' घड़ने पर कोस रहा है. कुछ तो इसे देश में अराजकता फ़ैलाने का षड्यंत्र भी मान रहे हैं.
हम भी जन्म से गाँधी हैं... बचपन से बापू के 'महान' उपदेशों को पढने और समझने- समझाने की कोशिश में लगे है ? यदि आज बापू जिन्दा होते तो अपने इन सफ़ेद पोश 'कांग्रेसियों' से पूछते जरूर...क्या यही शिक्षा दी थी मैंने  चांटा पड़ा और भाग खड़े हुए... शेर पुत्र से पूछना तो था...भई ये लो दूसरा गाल, एक और मारो.. मगर यह बतला दो कि क्यों मारा ? चांटा मारने वाला सिंह पुत्र जोर-जोर से महंगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध सिंहनाद कर रहा था और हमारे 'आटा मंत्री' फिर भी कह रहे थे कि मैंने ऐसा कुछ नहीं सुना ! ये कैसे गाँधीवादी हैं जो गाँधीजी के आदर्शों को इतनी जल्दी बिसरा बैठे. आज सारा देश भूख, बेकारी, बीमारी, बेईमानी, भ्रष्टाचार,कालाबाजारी और कालेधन से बेज़ार है. और इन हालात के लिए जिम्मेवार नेता-अफसर त्रस्त जनता को 'हिंसा-अहिंसा ' का कायदा पढ़ा रहे हैं.
बात गाँधी जी की अहिंसा की चल रही है... तो एक किस्सा याद आया. साबरमती आश्रम में गांधीजी की गाय का बछड़ा 'भीरु' गंभीर बीमारी से त्रस्त तड़प रहा था. बापू से 'भीरु' का दर्द देखा न गया. फ़ौरन ढोर -डाक्टर को बुला भेजा. डाक्टर से बोले या तो इस का दर्द हर लो या फिर इसे मुक्ति दे दो. बापू ने अपनी आँखों के सामने 'भीरु' को मुक्ति का इजेक्शन दिलवाया. आज देश का ७०% दीन हीन मानुष भूख-बीमारी से त्रस्त है. उनकी यह हालत अहिंसा के उस पुजारी के 'वारिसों' ने की है, जो उसके नाम पर लोगों को बरगला कर पिछले साढे छह दशकों से 'राज सिंघासन ' पर आरूढ़ हैं.
चांटे की गूँज... नेट पर लोगों के विचार देखे , अधिकाश का विचार है की 'चांटा' महंगाई और भ्रष्टाचार के गाल पर था न की किसी व्यक्ति विशेष के. अब भी वक्त है .. जनता के आक्रोश को समझने , आंकने और समय रहते निदान का. वर्ना बहुत देर हो जाएगी ..... और अहिंसा की परिभाषा बदले देर नहीं लगेगी ..महज 'अ' शब्द का फेर है. अ से अराजकता भी होती है
न क्षुधासम : शत्रु :... भूखा व्यक्ति कोई भी पाप कर सकता है. अत : सरकार का कर्तव्य है की देश में कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे.... : चाणक्य 
• एल.आर.गाँधी'AHWAN' - Association of Hindu Writers And Nationalists


रविवार, 13 नवंबर 2011

मिडियापन

ईसाई धर्म प्रचारक के कब्जे से छुड़ाई गयीं नेपाली लड़कियाँ
भारतीय मीडिया मौन 
कोयम्बटूर (तमिलनाडु) स्थित माइकल जॉब सेंटर एक ईसाई मिशनरी और अनाथालय है। यह केन्द्र एक स्कूल भी चलाता है, हाल ही में इस केन्द्र पर हुई एक छापामार कार्रवाई में नेपाल के सुदूर पहाड़ी इलाकों से लाई गई 23 बौद्ध लड़कियों को छुड़वाया गया। नेपाल के अन्दरूनी इलाके के गरीब बौद्धों को रुपये और बेटियों की शिक्षा का लालच देकर एक दलाल वीरबहादुर भदेरा ने उन्हें डॉक्टर पीपी जॉब के हवाले कर दिया।

मिशनरी अनाथालय चलाने वाले इस एवेंजेलिस्ट पीपी जॉब ने इन लड़कियों का सौदा 100-100 पौण्ड में उस दलाल से किया था। दलाल ने उन गरीब नेपालियों से कहा था कि उनकी लड़कियाँ काठमाण्डू में हैं, जबकि वे वहाँ से हजारों किमी दूर कोयम्बटूर पहुँच चुकी थीं। ज़ाहिर है कि अनाथालय चलाने वाले इस "सो कॉल्ड" फ़ादर ने यह सौदा काफ़ी फ़ायदे का किया था, क्योंकि इसने अपने अनाथालय का धंधा चमकाने के लिए इन लड़कियों का पंजीकरण "नेपाली ईसाई" कहकर किया, तथा अपने विदेशी ग्राहकों को यह बताया कि ये सभी लड़कियाँ उन नेपाली ईसाईयों की हैं जिन्हें वहाँ के माओवादियों ने मार दिया था। इसलिए इन अनाथ, बेसहारा, बेचारी नेपाली बच्चियों को गोद लें (ज़ाहिर है मोटी रकम देकर)। इस फ़ादर ने इन लड़कियों के नाम बदलकर ईसाई नामधारी कर दिया और फ़िर अपने अनाथालय के नाम से अमेरिका और ब्रिटेन से मोटा चन्दा लिया।
फ़ादर पीपी जॉब ने मिशनरी की वेबसाइट पर इन लड़कियों को बाकायदा नम्बर और उनके झूठे प्रोफ़ाइल दे रखे थे, ताकि मिशनरी के सेवाभावी कार्यों(?) से प्रभावित और द्रवित होकर विदेशों से चन्दा वसूला जा सके। इस संस्था की एक शाखा ब्रिटेन के समरसेट इलाके में "लव इन एक्शन" के नाम से भी स्थापित है। इनमें से इक्का-दुक्का लड़कियों को फ़र्जी ईसाई बनाकर उन्हें वहाँ शिफ़्ट किये जाने की योजना थी, ताकि मिशनरी अनाथालय की विश्वसनीयता बनी रहे, बाकी लड़कियों को भारत में ही "कमाई के विभिन्न तरीकों" के तहत खपाया जाना था। परन्तु ब्रिटेन के एक रिटायर्ड फ़ौजी ले. कर्नल फ़िलिप होम्स को इस पर शक हुआ और उन्होंने अपने भारतीय NGO के कार्यकर्ताओं के जरिये पुलिस के साथ मिलकर यह छापा डलवाया और इस तरह ये 23 लड़कियाँ ईसाई बनने से बच गईं…
कर्नल फ़िलिप यह जानकर चौंके कि इनमें से एक भी लड़की न तो अनाथ है और न ही ईसाई, जबकि चर्च के जरिये चन्दा इसी नाम से भेजा जा रहा था। इनके प्रोफ़ाइल में लिखा है कि "इन लड़कियों के माता-पिता की माओवादियों ने हत्या कर दी है, इन गरीब लड़कियों का कोई नहीं है, हमारे नेपाली मिशनरी ने इन्हें कोयम्बटूर की इस संस्था को सौंपा है…"। छुड़ाए जाने के बाद एक लड़की ने कहा कि, नेपाल में हमें माओवादियों से कोई धमकी नहीं मिली, बल्कि हमारे माता-पिता गरीब हैं इसलिए उन्होंने हमें उस दलाल के हाथों बेच दिया था। वहाँ तो हम बौद्ध धर्म का पालन करते थे, यहाँ ईसाई बना दिया गया… अब हम किस धर्म का पालन करें?"
इस बीच उस दलाल वीरबहादुर भदेरा का कोई अता-पता नहीं है और स्रोतों के मुताबिक वह लड़कियाँ बेचने के इस "पेशे"(?) में काफ़ी सालों से है, उसके खिलाफ़ नेपाल के कई थानों में केस दर्ज हैं। जबकि फ़ादर पीपी जॉब फ़िलहाल अमेरिका में है और उसने इस मामले पर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया है।
यहाँ आकर चर्च की गतिविधियों एवं मिशनरी अनाथालय चलाने वालों की मंशा पर शक के साथ-साथ इनकी कार्यप्रणाली तथा केन्द्र-राज्य की सरकारों का इन पर नियंत्रण भी सवालों के घेरे में है। क्योंकि भारत सरकार के बाल विकास मंत्रालय को फ़ादर पीपी जॉब ने जो जानकारी भेजी उसके अनुसार ये लड़कियाँ "हिमालयन ओरफ़ेनेज डेवलपमेंट सेंटर, हुमला" से लाई गईं, जिसके निदेशक हैं श्री वीरबहादुर भदेरा…"। समरसेट (ब्रिटेन) की इसकी सहयोगी संस्था ने 2007 से 2010 के बीच 18,000 पाउण्ड का चन्दा एकत्रित किया।
इस मामले में जहाँ एक ओर ईसाई जनसंख्या बढ़ाने के लिए "किसी भी स्तर तक" जाने वाले एवेंजेलिस्ट बेनकाब हुए हैं, वहीं दूसरी ओर गरीबी की मार झेल रहे उन लोगों की मानसिकता पर भी दया आती है जब उन्होंने इन लड़कियों को स्वीकार करने से ही इंकार कर दिया। फ़िलहाल यह सभी लड़कियाँ भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग के केन्द्र में हैं, लेकिन ऐसी कोई उम्मीद नहीं है कि उस कथित "फ़ादर" अथवा उस अनाथालय पर कोई कठोर कार्रवाई होगी…
हमेशा की तरह सबसे घटिया भूमिका भारत के "सबसे तेज़" मीडिया की रही, जिसने इस घटना का कोई उल्लेख तक नहीं किया, परन्तु यदि यही काम किसी "हिन्दू आश्रम" या किसी "पुजारी" ने किया होता तो NDTV समेत सभी चमचों ने पूरे हिन्दू धर्म को ही कठघरे में खड़ा कर दिया होता…। शायद "सेकुलरिज़्म" इसी को कहते हैं… 
सुरेश चिपलूणकर 
नए पाठकों से एक आग्रह :- मेरे लेखों को नियमित रूप से अपने ईमेल पर प्राप्त करने हेतु आप इस ब्लॉग को "सब्स्क्राइब" करें (साइड बार में ईमेल पता भरने का फ़ॉर्म दिया हुआ है)। इसी प्रकार चूंकि फ़ेसबुक (https://www.facebook.com/suresh.chiplunkar1) पर भी "सिर्फ़ 5000 मित्र" का अवरोध उत्पन्न हो चुका है अतः वहाँ भी Subscribe का विकल्प चुनें।
लेख का स्रोत :- http://www.telegraph.co.uk/news/worldnews/asia/india/8856050/The-Indian-preacher-and-the-fake-orphan-scandal.html
http://www.hindustantimes.com/world-news/Nepal/Orphan-girls-rescued-from-TN/Article1-762956.aspx

सहयात्रा में पढ़िए