अहिंसा का प्रतीक सपाट 'चांटा'

ये वही लोग हैं जो आम जनता को 'रोटी' मांगने पर न्याय व्यवस्था की 'लाठी' से पीटते हैं. भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ रामलीला मैदान में बैठे 'आम आदमी' को आधी रात को उठा कर पीट-पीट कर दौड़ाते हैं और दौड़ा-दौड़ा कर पीटते हैं. क्या वह 'हिंसा ' नहीं थी. सारी संसद आज शरद-चांटे से विचलित है और अन्ना को नया गाँधीवाद ' बस एक ही चांटा' घड़ने पर कोस रही है. कुछ तो इसे देश में अराजकता फ़ैलाने का षड्यंत्र भी मान रहे हैं.

ये वही लोग हैं जो आम जनता को 'रोटी' मांगने पर न्याय व्यवस्था की 'लाठी' से पीटते हैं. भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ रामलीला मैदान में बैठे 'आम

हम भी जन्म से गाँधी हैं... बचपन से बापू के 'महान' उपदेशों को पढने और समझने- समझाने की कोशिश में लगे है ? यदि आज बापू जिन्दा होते तो अपने इन सफ़ेद पोश 'कांग्रेसियों' से पूछते जरूर...क्या यही शिक्षा दी थी मैंने चांटा पड़ा और भाग खड़े हुए... शेर पुत्र से पूछना तो था...भई ये लो दूसरा गाल, एक और मारो.. मगर यह बतला दो कि क्यों मारा ? चांटा

बात गाँधी जी की अहिंसा की चल रही है... तो एक किस्सा याद आया. साबरमती आश्रम में गांधीजी की गाय का बछड़ा 'भीरु' गंभीर बीमारी से त्रस्त तड़प रहा था. बापू से 'भीरु' का दर्द देखा न गया. फ़ौरन ढोर -डाक्टर को बुला भेजा. डाक्टर से बोले या तो इस का दर्द हर लो या फिर इसे मुक्ति दे दो. बापू ने अपनी आँखों के सामने 'भीरु' को मुक्ति का इजेक्शन दिलवाया. आज देश का ७०% दीन हीन मानुष भूख-बीमारी से त्रस्त है. उनकी यह हालत अहिंसा के उस पुजारी के 'वारिसों' ने की है, जो उसके नाम पर लोगों को बरगला कर पिछले साढे छह दशकों से 'राज सिंघासन ' पर आरूढ़ हैं.
चांटे की गूँज... नेट पर लोगों के विचार देखे , अधिकाश का विचार है की 'चांटा' महंगाई और भ्रष्टाचार के गाल पर था न की किसी व्यक्ति विशेष के. अब भी वक्त है .. जनता के आक्रोश को समझने , आंकने और समय रहते निदान का. वर्ना बहुत देर हो जाएगी ..... और अहिंसा की परिभाषा बदले देर नहीं लगेगी ..महज 'अ' शब्द का फेर है. अ से अराजकता भी होती है
न क्षुधासम : शत्रु :... भूखा व्यक्ति कोई भी पाप कर सकता है. अत : सरकार का कर्तव्य है की देश में कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे.... : चाणक्य
• एल.आर.गाँधी'AHWAN' - Association of Hindu Writers And Nationalists
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