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शुक्रवार, 25 मई 2012

पारिवारिक जागीर
संसद इनके "पिताजी की गद्दी" और "पारिवारिक जागीर" है- हमारी संसद के 60 साल पूरे हो गए हैं… आजकल इसके सम्मान की बहुत चिंता जताई जा रही है।
आइए, इन विशिष्ट आँकड़ों पर निगाह डालते हैं और जानते हैं कि वंशानुगत आधार पर खड़े होने वाले उम्मीदवार और उन्हें वोट देने वाली भारत की जनता के मन में "गुलामी" की जड़ें कितनी गहरी हैं।
संसद के कुल सदस्यों में से विभिन्न पार्टियों के कितने सांसद ऐसे हैं जो सिर्फ़ और "पिता-चाचा-भाई की बदौलत या उनके साथ" सांसद हैं यानी कुल मिलाकर संसद में एक पारिवारिक पिकनिक का माहौल है ।
(1) राष्ट्रीय लोकदल- 5 में से 5 (100%)
(2) राकांपा- 9 में से 7 (77%)
(3) बीजद- 14 में से 6 (42%)
(4) कांग्रेस- 208 में से 78 (37%)
(5) बसपा- 21 में से 7 (33%)
(6) डीएमके- 18 में से 6 (33%)
(7) सपा- 22 में से 6 (27%)
(8) सीपीआई-16 में से 4 (25%)
(9) जद (यू)- 20 में से 4 (25%)
(10) भाजपा- 116 में से 22 (19%)
(11) तृणमूल- 19 में से 3 (15%)
(12) शिवसेना- 11 में से 1 (9%)
(13) एआईडीएमके- 9 में से 0 (9%)
(14) तेलुगू देसम- 6 में से 0 (0%) 
यानी इक्का-दुक्का पार्टियों को छोड़कर लगभग सभी पार्टियों में "भाई-भतीजावाद" का कमोबेश वर्चस्व ही है। सभी ने संसद को "चरागाह" समझ रखा है…और हम लोग?
• सुरेश चिपलूणकर/फ़ेसबुक पर


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