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मंगलवार, 29 मई 2012

सवाल ही सवाल






इन 50 प्रश्नों के उत्तर दीजिए



1. यदि पाकिस्तान और भारत का बंटवारा धर्म के आधार पर हुआ जिसमें पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट्र बना तो भारत हिन्दू राष्ट्र घोषित क्यों नहीं किया ? जबकि दुनिया में एक भी हिन्दू राष्ट्र नहीं है!
2. तथाकथित राष्ट्र पिता मोहनदास गांधी ने ऐसा क्यों कहा कि पाकिस्तान से हिन्दू-सिखों की लाशें आएं तो आएं लेकिन यहाँ एक भी मुस्लिम का खून नहीं बहना चाहिए ?
3. मोहनदास करमचंद गांधी चाहते तो भगत सिंह जी को बचा सकते थे क्यों नहीं बचाया? भारत मे मुस्लिमों के लिए अलग-अलग धाराएं क्यों हैं ?
4. ऐसा क्यों है कि भारत से अलग होकर जितने भी देश बने हैं सब इस्लामिक देश ही बने। क्यों ?
5. केरल मे कोई हिन्दू रिक्शा चालक अपने रिक्शे पर श्री कृष्ण जय हनुमान क्यों नहीं लिख सकता ?
6. भारत मे मुस्लिम 18% के आस पास हैं फिर भी अल्पसंख्यक कैसे हैं ? जबकि नियम कहता है कि 10% के अंदर की संख्या ही अल्पसंख्यक होती है।
7. कश्मीर से हिन्दुओं को क्यों खदेड़ दिया जबकि कश्मीर हिन्दुओं का राज्य था ?
8. ऐसा क्यों है कि मुस्लिम जहां 30-40% हो जाते हैं तब अपने लिए अलग इस्लामिक राष्ट्र बनाने की मांग उठाते हैं विरोध करते हैं। अन्य समुदाय के गले रेतते हैं क्यों ?
9. हिन्दुत्व को सांप्रदायिक क्यों ठहराया जाता है जबकि इस्लामिक आतंकवाद को धर्म से नहीं जोड़ने की अपील की जाती है?
10. फरवरी को बाबा रामदेव ने सर्वप्रथम भ्रष्टाचार के खिलाफ विशाल रैली आयोजित की थी, उस महारैली में 1 लाख 18 हजार लोग आए थे। तब मीडिया के किसी भी चैनल ने एक खबर तक नहीं दिखायी थी और जैसे ही अण्णा जंतर मन्तर पर मात्र 5000 समर्थको के साथ अनशन पर बैठे तो सारे मीडिया वाले अण्णा चालीसा गाने लगे क्यों? इसके पीछे क्या कारण है?
11. अगर अण्णा हज़ारे को अनशन करना ही था तो रामदेव से मंच से पब्लिसिटी हासिल करके अलग मंच बनाने की क्या आवश्यकता थी?
12. बॉलीवुड अण्णा हज़ारे का समर्थन करता है लेकिन रामदेवजी का विरोध क्यों करता है?
13. हमारा देश ही दुनिया मे एक मात्र देश है जो मुस्लिमों को हज सब्सिडी देता है। 60 वर्षो मे सरकार ने इसके लिए 10000 करोड़ रुपये खर्च कर डाले क्यों?
14. सोनिया गांधी ने अपना जन्म 1944 में बताया है लेकिन तथ्य बताते हैं कि उसके पिताजी सिग्नोर स्टेफनो माइनो 1943 से 1972 के बीच रूस मे कैदी थे।
15. भारत मे मुस्लिमो के मदरसों के अनुदान हिन्दू मंदिरों से क्यों?
16. कश्मीर मे गीता उपदेश देने पर संवेधानिक अडचने क्यों है ?
17. जामा मस्जिद के इमाम सैयद बुखारी ने एक बार कहा था की वह ओसामा बिन लादेन का समर्थन करता है और आईएसआई का ऐजेंट है फिर भी भारत सरकार उसे गिरफ्तार क्यों नहीं करती ?
18. सरकार ने अण्णा हज़ारे के आंदोलन को सख्ती से नहीं कुचला जबकि रामदेव के समर्थकों और स्वामी रामदेव की जान के पीछे पड़ी थी क्यों?
19. मोहनदास गांधी ने अपने ब्रह्मचर्य के प्रयोग को बुढ़ापे मे करके क्या सीखा? युवाओ को क्या सिखाया ?
20. पाकिस्तान मे 1947 मे 22.45% हिन्दू थे। आज मात्र 1.12% शेष है सब कहां गए?
मुगलों द्वारा ध्वस्त किया गये सोमनाथ 
मंदिर के जीर्णोद्धार की बात आयी तो गांधी ने ऐसा क्यों कहा कि यह सरकारी पैसे का दुरपयोग है जबकि जामा मस्जिद के पुनर्निर्माण के लिए सरकार पर दबाव डाला और  अनशन पर जा बैठे।
21. भारत मे 1947 मे 7.88% मुस्लिम थे आज 18.80% है। इतनी आबादी कैसे बढ़ी?
22. भारत मे मीडिया हिन्दुओं और संघ के खिलाफ क्यों बोलता है? अकबर के हरम में 4878 हिन्दू औरतें थीं, जोधा अकबर फिल्म में और स्कूली इतिहास में इसे क्यों नहीं दर्शाया गया?
23. ऐसा क्यों होता है कि जो भी सोनिया गांधी का धर्म जानने की कोशिश करता है कोर्ट उसी पर जुर्माना लगा देती है?
24. बाबर ने लाखों हिन्दुओ की हत्या की फिर भी हम उसकी मस्जिद क्यों देखना चाहते हैं ? भारत मे 80% हिन्दू हैं फिर भी श्री राम मंदिर क्यों नहीं बन सकता?
25. कॉंग्रेस के शासन मे 645 दंगे हुए जिनमें 32,427 लोग मारे गये, मीडिया को वह दिखाई नहीं देता जबकि गुजरात में प्रतिकृया मे हुए दंगो मे 2000 लोग मारे गए। उस पर मीडिया हो इतना हल्ला करता है क्यों?
26. 67 कारसेवको को गोधरा मे जिंदा जलाया मीडिया उनकी बात क्यूँ नहीं करता?
27. जवाहर लाल नेहरू के दादा एक मुस्लिम (गयासुद्दीन गाजी) थे, हमें इतिहास मे गलत क्यों बताया गया?
28. भारत मे गुरु परंपरा रही है, हर महापुरुष के गुरु थे गांधी जी ने आज तक अपना गुरु क्यों नहीं बनाया?
29. भारत एक ऐसा देश है जहा से सभ्यता शुरू हुई तो गांधी इस देश का पिता कैसे?
30. दुनिया मे एक भी हिन्दू देश नहीं है फिर भी आप सोचते है हिन्दू सांप्रदायिक है?
31. गांधी ने खिलाफत आंदोलन को सहयोग क्यों दिया इससे क्या फायदे हुए?
32. शुद्धिकरण आंदोलन कर रहे स्वामी श्रद्धानन्द की हत्या करने वाले रशीद नाम के युवक को गांधी ने भाई कहकर संबोधित क्यों किया?
33. गांधी ने कहा था की रशीद भाई जैसा है और स्वामी श्रद्धानन्द हिन्दू एकता का कार्यक्रम चलाकर "हिन्दू - मुस्लिम एकता" को विखंडित कर रहे थे।
34. जब तालिबान ने बुद्ध की मूर्तिया गिरायी थीं तो सेकुलर कीट मीडिया के "टाइम्स ऑफ इंडिया" ने अपने कॉलम मे लिखा था कि यह बाबरी मस्जिद गिराने पर प्रतिशोध है। क्या आप सहमत हैं इस वक्तव्य से? जैसे को तैसा? तो आप गुजरात के दंगो का विरोध क्यों करते हैं? वहाँ भी तो गोधरा कांड के विरोध मे बदले की आग मे दंगे हुए थे?
35. ईसाई मिशनरी मुस्लिम इलाको मे धर्मांतरण क्यों नहीं करती?
36. भारतीय मीडिया हिन्दुत्व विरोधी क्यों है? संघ सबसे बड़ा एनजीओ है बिना किसी सरकारी मदद के, फिर मीडिया को इससे क्या परेशानी है?
37. संघ देश के गरीब पिछड़े इलाको मे अपने स्वयं सेवी संस्थानों की मदद से मुफ्त मे विद्यालय चलाता है जहां सरकारी योजनाएं नहीं चलती। संघ देश विरोधी है या मीडिया ?
38. आप मीडिया के बारे मे क्या सोचते हैं? रामदेव भगवाधारी है इसलिए उसका समर्थन नहीं करता? या अण्णा हज़ारे कॉंग्रेस प्रायोजित ऐजेंट ताकि राष्ट्रवादियो को बाँट कर वोट काट सके और कॉंग्रेस जीते?
39. केरल मे आप जीजस-अल्ला के नाम से शपथ ले सकते है लेकिन राम के नाम नहीं ले सकते। सेकुलर कीट TIMES OF INDIA ने अपने लेख मे लिखा था "किस तरह बंगलादेशी घुसपेठियों का भारतीयकरण किया जाए" आप ऐसे लेख से इन मीडिया वालों की मंशा समझ सकते हैं कि ये लोग भारत को एक धर्मशाला मानते हैं।
40. हमारे राष्ट्रपति भवन मे एक मस्जिद है लेकिन मंदिर नहीं है। क्या आप अभी भी सोचते हैं भारत एक सेकुलर देश है?
41. लोग कहते हैं कि ताजमहल के बारे मे ये सब कोरी अफवाहें हैं कि यह एक हिन्दू मंदिर है। अगर ये अफवाहें हैं तो कार्बन 14 पद्धति से इसकी जांच करवा लो। दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा और नीचे के आनन फानन मे बंद किए गए कमरे भी खोले जाएं। देश भी जाने की उनमें क्या है? जैसे पद्मनाभ मंदिर के तहखाने खोले गए? सच तो यह है कि आगरा के पुरातत्व विभाग के पास भी ऐसी कोई जानकारी नहीं है कि इस महल का निर्माण शाहजहा ने करवाया था।
42. भारत मे मस्जिदों के इमाम और मौलवियों को दस-दस हजार से अधिक तनख्वाह मिलती है। पुजारियों को क्यों नहीं? क्या यही सेकुलर वाद है?
43. 2002 मे कर्नाटक सरकार को मंदिरो से 72 करोड़ की आवक हुई जिसमे से 50 करोड़ मदरसों पर खर्च हुए, 10 करोड़ चर्च पर और सिर्फ 8.5 करोड़ मंदिरों पर। क्यों?
44. हिन्दू अपने पैसे से मस्जिद क्यों बनवाए? क्यों चर्च चलाये? क्या मदरसों से डॉक्टर, इंजीनियर निकलते हैं?
45. यहाँ पॉप के आगमन पर राष्ट्र में अवकाश रखा जाता है और शंकरचार्य को आधी रात दिवाली के दिन कैद कर लिया जाता है। क्यों?
46. पॉप को भारत मे बिना बुलाए आने दिया जाता है और नेपाल के राजा को मकर सक्रांति पर भी नहीं आने दिया जाता (1965)।
47. एक अँग्रेजी अखबार ने सोनिया का एक लेख छापा हिन्दुत्व पर? क्या उस अखबार को सोनिया से बेहतर लेखक नहीं मिला?
48. उत्तर पूर्वी राज्यों में न्यूजीलैण्ड, ऑस्ट्रेलिया और नीदरलैण्ड की सहायता से चर्च का निर्माण हो रहा है। क्या आपको लगता है चर्च राष्ट्र वाद को बढ़ावा देते है?
49. सोनिया गाँधी अपनी नागरिकता पर कुछ नहीं बोलती, क्यों?
50. सुब्रमन्यम स्वामी के आरोपों पर कांग्रेस कुछ नहीं बोलती, क्यों?
अभी आपके मन में भी तमाम प्रश्न होंगे, उन्हें भी आप जोड़िए, इतने जोड़िए कि लोगों का दिमाग हिल जाए...!

शुक्रवार, 25 मई 2012

पारिवारिक जागीर
संसद इनके "पिताजी की गद्दी" और "पारिवारिक जागीर" है- हमारी संसद के 60 साल पूरे हो गए हैं… आजकल इसके सम्मान की बहुत चिंता जताई जा रही है।
आइए, इन विशिष्ट आँकड़ों पर निगाह डालते हैं और जानते हैं कि वंशानुगत आधार पर खड़े होने वाले उम्मीदवार और उन्हें वोट देने वाली भारत की जनता के मन में "गुलामी" की जड़ें कितनी गहरी हैं।
संसद के कुल सदस्यों में से विभिन्न पार्टियों के कितने सांसद ऐसे हैं जो सिर्फ़ और "पिता-चाचा-भाई की बदौलत या उनके साथ" सांसद हैं यानी कुल मिलाकर संसद में एक पारिवारिक पिकनिक का माहौल है ।
(1) राष्ट्रीय लोकदल- 5 में से 5 (100%)
(2) राकांपा- 9 में से 7 (77%)
(3) बीजद- 14 में से 6 (42%)
(4) कांग्रेस- 208 में से 78 (37%)
(5) बसपा- 21 में से 7 (33%)
(6) डीएमके- 18 में से 6 (33%)
(7) सपा- 22 में से 6 (27%)
(8) सीपीआई-16 में से 4 (25%)
(9) जद (यू)- 20 में से 4 (25%)
(10) भाजपा- 116 में से 22 (19%)
(11) तृणमूल- 19 में से 3 (15%)
(12) शिवसेना- 11 में से 1 (9%)
(13) एआईडीएमके- 9 में से 0 (9%)
(14) तेलुगू देसम- 6 में से 0 (0%) 
यानी इक्का-दुक्का पार्टियों को छोड़कर लगभग सभी पार्टियों में "भाई-भतीजावाद" का कमोबेश वर्चस्व ही है। सभी ने संसद को "चरागाह" समझ रखा है…और हम लोग?
• सुरेश चिपलूणकर/फ़ेसबुक पर


सोमवार, 14 मई 2012

कार्टून विरोध

कार्टून और कार्टूनिस्टों का विरोध
साहित्य की तरह कार्टून भी समाज का दर्पण है। उससे डरना क्या, दर्पण तो वही दिखाएगा जो उसके सामने है! अच्छ यही है भद्रजनो, करने वाले काम कीजिए, वह मत कीजिए जो आपकी और इस पवित्र इमारत के सम्मान के अनुकूल नहीं। करना ही है तो इस देश का नाम सिर्फ़ भारत कर दो जो अभी तक ‘इण्डिया’ का अनुवाद बना हुआ है। गुलाम रहे देशों में उच्चायोग की जगह अपने देश का दूतावास बनाओ। इस देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी का सभी जगह सम्मान हो, ऐसी व्यवस्था कर दो। देश और देशवासियों के हित में अनेक काम किये जा सकते हैं, उन्हें करने में अपनी ऊर्जा लगाइए। कार्टून और कार्टूनिस्टों के पीछे पड़ने से क्या हासिल होगा- कुछ और नये (अप्रिय) कार्टून!
सन् १९४९ में कार्टूनिस्ट शंकर द्वारा बनाया गया कार्टून


‘कार्टून’ से डरना और उनको लेकर विवाद खड़े करना कोई नयी बात नहीं है। ऐसा कई बार हुआ है। ताज़ा मामला अम्बेडकर और नेहरू के कार्टून को लेकर सामने आया है। हाल ही में इस कार्टून पर सांसदों ने संसद में अपना क्रोध व्यक्त किया। पहले से ही विवादों में घिरे मानव संसाधन विकास मन्त्री कपिल सिब्बल का इस मामले में इस्तीफ़ा भी मांग लिया गया। कॉंग्रेसी सांसद पी.एल. पुनिया ने कहा कि वे अपने पद से त्याग पत्र दें या देश से माफ़ी मांगें। यह भी मांग उठी कि सभी सम्बधित अधिकारियों को उनके पद से हटा दिया जाए। सभी के एक सुर होने का लगभग एक ही अर्थ था। इसे भेड़चाल या भीड़चाल  कहा जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि आज विवादास्पद बना दिया गया यह कार्टून २८ अगस्त, १९४९ को विश्व प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट शंकर पिल्लई (1902--1989) ने बनाया था। तब जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधान मन्त्री थे। उन्होंने शंकर से कह रखा था कि उन्हें मित्र होने के नाते भी कार्टून बनाने में बख्शा नहीं जाए। कार्टूनिस्ट शंकर उनके प्रिय मित्र थे। इस कार्टून पर न नेहरू ने और न ही किसी अन्य व्यक्ति ने बीते ६३ सालों में कभी कोई आपत्ति की। अब अचानक कुछ लोगों को यह लगा कि यह कार्टून दलित विरोधी है। यानी इस कार्टून से अम्बेडकर और दलितों का अपमान हो रहा है या लोगों की भावनाएं आहत हो रही हैं। ऐसे कार्टून को एनसीईआरटी की सम्बन्धित पुस्तक से अविलम्ब हटा दिया जाना चाहिए। कार्टून विवाद के चलते एनसीईआरटी की पुस्तक प्रकाशन वाली समिति के सलाहकार योगेन्द्र यादव और सुहास पल्सीकर ने विरोधस्वरूप समिति से त्याग पत्र दे दिया।

किसी पुस्तक को एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में ऐसे ही शामिल नहीं कर लिया जाता है। अनेक जानकार और विद्वान लोग उसे ध्यान से देखते-पढ़ते हैं। इन लोगों के चयन पर ‘दलित विरोधी’ होने का आरोप लगाना ही गलत है। इनमें दलित अधिकारों के समर्थक और उनके लिए लड़ने वाले लोग शामिल हैं। दूसरी ओर हमारे ‘माननीय’ विद्वान सांसदों का कहना है कि कार्टून प्रकशन के जिम्मेदार लोगों को पदमुक्त किया जाए। उन लोगों को यह कार्टून समझने और अपने ढंग से उसकी व्याख्या करने में ही  कई साल लग गए। इसके आगे कहने को कुछ बचता है क्या?

हमारे यहां अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को लेकर विवाद-बहसें चलती रहती हैं। समर्थ, सम्पन्न और सत्ताधारी लोग लगभग हर चीज को अपने पक्ष में और अपने ढंग से रखना-चलाना चाहते हैं। ऊपर से विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र होने का ढोंग भी ओढ़े रखना चाहते हैं। सहिष्णुता सिमटती जा रही है। स्वस्थ दृष्टिकोण मैला होता जा रहा है। हर चीज अपनी पसन्द की होनी चाहिए। हर काम अपने पक्ष में होना चाहिए। हर फ़ैसला अपने पाले में होना चाहिए। अपनी पसन्द से उलट जरा कुछ इधर-उधर हुआ नहीं कि भड़क गये। इसके अलावा अपनी दुकानदारी चलाये रखने के लिए भी भाई लोगों के उर्वर मस्तिष्क में नाना प्रकार के विचार आते रहते हैं। कई विचारों पर अमल करना खतरनाक भी हो सकता हैं। पर इससे उन्हें क्या, भुगतेंगे तो और लोग ही!

उत्तर प्रदेश में लोगों के गाढ़े पसीने की कमाई के करोड़ों रुपयों को एक ‘मूर्ति सनक’ के चलते बरबाद कर देने पर किसी की भावनाएं आहत नहीं हुईं। हमारे माननीय अपनी सुख-सुविधाओं-निवास नवीनीकरण पर मोटी राशि बरबाद कर देते हैं तब कोई चूं नहीं करता। विश्व के तमाम देशों से इलाज कराने लोग भारत आ रहे हैं और हमारे माननीय और महारानी छींक आते ही विदेश उड़ जाते हैं। स्विस बैकों में जमा धन और भ्रष्टाचार के मामले में जमुहाई आने लगती है। कितने लोग घपले-घोटाले करके अपने आसनों पर कुटिल मुस्कान के साथ विराजमान हैं। जिनकी बीड़ी खरीदने की औकात नहीं थी वे अब अरबों के मालिक हैं, रोजाना के शाही खर्च तो किसी गिनती में ही नहीं आते। देशभर में उपजाऊ और गैर उपजाऊ जमीनें खरीदकर या कब्जाकर किसने रखी हुई हैं। वगैरह। बाबू-इंसपैक्टर जैसी छोटी मछलियों के घर छापे में ही करोड़ों मिल रहे हैं फ़िर माहिर और सक्षम मगरमच्छों की बात ही कुछ और है। ऐसी तमाम बातें है जिनसे बेचारी भावनाएं आहत होने से प्राय: बच निकलती हैं। सार की बात यह है कि विषयान्तर होते हुए भी मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं कि करने को तमाम काम हैं, उन पर ध्यान केन्द्रित करने में मन लगाओ भाई!

कार्टूनिस्ट चन्दर
इस कार्टून मुद्दे पर अभी तक किसी बड़े नेता ने किसी को समझाने का या वास्तविकता को सामने रखने का गम्भीर प्रयास नहीं किया। सभी छोटे-बड़े मगन हैं- जो हो रहा है होने दो। कार्टून दलित विरोधी है। बिल्कुल है। इससे अम्बेडकर और दलितों का अपमान होता है। होता है। कार्टून हटाना है, हटा देंगे। हमको डराओ तो, हम डर जाएंगे! वाह!! कितनी बहादुरी है सबसे बड़े लोकतन्त्र में जहां हर तरफ़ अभिव्यक्ति की पूरी स्वतन्त्रता है। कार्टून पसन्द नहीं, रोक लगा दो। वेबसाइट पसन्द नहीं। बन्द कर दो। कोई अप्रिय बात कहे- मुंह तोड़ दो! कभी अपने भीतर झांकने की हिम्मत दिखाई क्या! अरे विरोध करना है तो अपने उन साथियों का करो आपके बगल में बैठने लायक नहीं हैं। चुनाव के समय अनुपयुक्त और अयोग्य लोगों को टिकट देने का विरोध करो।

साहित्य की तरह कार्टून भी का दर्पण है। उससे डरना क्या, दर्पण तो वही दिखाएगा जो उसके सामने है! अच्छ यही है भद्रजनो, करने वाले काम कीजिए, वह मत कीजिए जो आपकी और इस पवित्र इमारत के सम्मान के अनुकूल नहीं। करना ही है तो इस देश का नाम सिर्फ़ भारत कर दो जो अभी तक ‘इण्डिया’ का अनुवाद बना हुआ है। गुलाम रहे देशों में उच्चायोग की जगह अपने देश का दूतावास बनाओ। इस देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी का सभी जगह सम्मान हो, ऐसी व्यवस्था कर दो। देश और देशवासियों के हित में अनेक काम किये जा सकते हैं, उन्हें करने में अपनी ऊर्जा लगाइए। कार्टून और कार्टूनिस्टों के पीछे पड़ने से क्या हासिल होगा- कुछ और नये (अप्रिय) कार्टून!
कार्टूनिस्ट चन्दर

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