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बुधवार, 23 अप्रैल 2008

तकनीक

कंप्यूटर के निरंतर उपयोग से भी बढ़ती है परेशानी


कम्प्यूटर पर लगातार काम करने की धुन, लगन, आदत, आवश्यकता, मजबूरी या आनंद का अनुभव करना और कम्प्यूटर पर किसी दिन काम न कर पाना या अपेक्षाकृत कम समय काम कर पाना एक अलग प्रकार की परेशानी का अनुभव कराता है। इससे झुंझलाहट होना, दिनचर्या में अधूरापन अनुभव होना आदि से सामना होने के अलावा उपयोक्ता के सामान्य व्यवहार में भी बदलाव आ जाता है। ऐसी स्थिति व्यक्ति के लती या एडिक्ट होने की द्योतक है।


सुविधाजनक, आसान, समय बचाऊ आधुनिक उपयोगी तकनीक जल्दी ही लोकप्रिय हो जाती है भले ही उसमें कुछ कमियां हों या कुछ लोग उसकी आलोचना करते हों। आज के भागमभाग वाले जीवन में कम्प्यूटर ने अपना खास स्थान बना लिया है, इतना खास कि अब लगभग हर क्षेत्र में कंप्यूटर की सहायता के बिना कार्य संपन्न हो पाना असम्भव सा माना जा सकता है। जो लोग कभी कम्प्यूटर के नाम से ही नाक-भौं सिकोड़ा करते थे उनमें से अधिकांश कम्प्यूटर की कार्यप्रणाली जानने-सीखने के इच्छुक हैं। यही नहीं ऐसे तमाम लोग अब कम्प्यूटर का उपयोग करने के अभ्यस्त भी हो गए हैं।
कम्प्यूटर का निरंतर घंटों या रातदिन उपयोग करने वालों की भी कमी नहीं है। दिनप्रतिदिन कम्प्यूटर पर हमारी निजी और व्यावसायिक निर्भरता बढ़ती ही जा रही है। यह आवश्यकता हो या मजबूरी, निःसंदेह अंततः घाटे का सौदा ही सिद्ध होगा। आधुनिक तकनीक जहां विभिन्न क्षेत्रों में अपनी उपयोगिता सिद्ध करती है वहीं उसकी कुछ कमियां या बुराइयां भी सामने आती हैं। यह स्थिति तब अधिक घातक होती है जब बिना सावधानी बरते अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए निरंतर एक धुन के अधीन कार्य किया जाता है।

निजी या व्यावसायिक या कार्यालय आदि के विभिन्न कार्यों के लिए कम्प्यूटर का आज जमकर उपयोग किया जा रहा है इससे कम्प्यूटर एडिक्शन, कारपल टनल सिंड्रोम, कंप्यूटर विजन सिंड्रोम, डिप्रेशन आदि अनेक परेशानियों से कम्प्यूटर उपयोक्ता का सामना होना तय है। विभिन्न आयु वर्ग के बच्चे कंप्यूटर के आगे मानीटर की स्क्रीन पर आंखें गड़ाए अपनी पसंद के गेम खेलते रहते हैं, कार्टून या एनीमेशन फिल्में देखते रहते हैं या फिर अन्य कार्य करते रहते हैं। उनका बचपन आज कम्प्यूटर के हवाले हो गया है। घर हो या स्कूल, बच्चों को बाह्य और आंतरिक रूप से कम्प्यूटर ने बच्चों के व्यक्तित्व और दिनचर्या को बदलकर रख दिया है। जिन बच्चों को माता-पिता की व्यस्तता के कारण अधिकांश समय अकेले गुजारना पड़ता है उनके लिए कम्प्यूटर ही एक अच्छा साथी सिद्ध होता है। यदि इंटरनेट कनेक्शन उपलब्ध हो तो सोने पर सुहागा।
कम्प्यूटर गेम के लिए जाय स्टिक या माउस का ही जमकर प्रयोग किया जाता है। रुचि का कार्य होने के कारण बिना हिलेडुले बच्चे निरंतर अपने काम में जुटे रहते हैं। लगातार माउस या जाय स्टिक से एक ही क्रिया दुहराते रहने से उंगलियां थक जाती हैं। कम्प्यूटर पर लगातार घंटों मानीटर पर नजरें गड़ाए उंगलियों से की बोर्ड पर काम करते रहने से उंगलियों की संवेदनशीलता में कमी आने लगती है जिससे मांसपेशियां कमजोर हाने लगती हैं। एक ही अवस्था में काफी देर तक बैठे रहने से पीठ दर्द की शिकायत होने तगती है। इसके साथ-साथ कम्प्यूटर उपयोक्ता बांह मेज पर टिकी रहने से रक्त संचार और रीढ़ की हड्डी भी प्रभावित होते हैं। प्रायः कम्प्यूटर उपयोग करने के लिए कुर्सी वयस्कों के अनुरूप बनी होती है, उसी बड़ी कुर्सी पर बैटकर बच्चे कार्य करते हैं। इस प्रकार बच्चों के पैर जमीन से ऊपर ही लटकी हुई अवस्था में रहते हैं। परिणामस्वरूप उनके पैरों में दर्द भी रहने लगता है।
कम्प्यूटर पर काम करते रहने का सर्वाधिक असर आंखों पर पड़ता है। मेज की चैड़ाई का एक बड़ा भाग एक सामान्य मानीटर घेर लेता है जिससे मानीटर और उपयोक्ता की आंखों के बीच की दूरी काफी कम रहती है। प्रायः यह दूरी लगभग 40-50 सेमी. ही होती है। हां, एलसीडी मानीटर के उपयोग से यह दूरी बढ़ाई जा सकती है। एलसीडी मानीटर कुछ मंहगा अवश्य है पर काफी सुविधाजनक सिद्ध होता है। कम्प्यूटर स्क्रीन पर लगातार नजरें गड़ाए रहने से आंखों पर खिंचाव पड़ने लगता है। उपयोक्ता बच्चा हो बड़ा, इससे उसकी आंखें अवश्य प्रभावित होती हैं। आंखों में जलन, निकट व दूर की चीजें देखने में असुविधा होना, थकान आदि परेशानियां सामने आती हैं। इससे गर्दन, कमर, पीठ, कलाई व बाजुओं में दर्द होना या बने रहना आदि व्याधियां सामने आती हैं।
कम्प्यूटर पर प्रतिदिन 2-3 घंटे काम करते रहने पर प्रायः खास परेशानी नहीं होती। इससे अधिक समय लगातार काम करना परेशानी पैदा करता है। कम्यूटर हमारा अच्छा सहयोगी सिद्ध हुआ है पर अति हर बात की बुरी होती है। यानी इस पर जमकर काम करते रहना परेशानियों को न्यौता देता है। जानेमाने मनोचिकित्सक डा. संजीव सक्सेना के अनुसार जो लोग कम्प्यूटर पर नियमित रूप से काफी समय निरंतर काम करते रहते हैं वे अकेलेपन के शिकार हो जाते हैं। वे अपने जीवन के वास्तविक आनंद से वंचित होने लगते हैं।

कम्प्यूटर पर लगातार काम करने की धुन, लगन, आदत, आवश्यकता, मजबूरी या आनंद का अनुभव करना और कम्प्यूटर पर किसी दिन काम न कर पाना या अपेक्षाकृत कम समय काम कर पाना एक अलग प्रकार की परेशानी का अनुभव कराता है। इससे झुंझलाहट होना, दिनचर्या में अधूरापन अनुभव होना आदि से सामना होने के अलावा उपयोक्ता के सामान्य व्यवहार में भी बदलाव आ जाता है। ऐसी स्थिति व्यक्ति के लती या एडिक्ट होने की द्योतक है। कम्प्यूटर एडिक्ट जब कम्प्यूटर पर काम नहीं कर पाता तो वह परेशान होने लगता है। ज्यौं ही वह कम्प्यूटर का उपयोग करने का अवसर मिलता है, स्वयं को किसी शहंशाह से कम नहीं समझता और कम्प्यूटर छोड़कर जाने का उसका मन नहीं करता। इसके लिए उपयोक्ता अपने परिजनों, मित्रों, नियोक्ता आदि से झूठ बोलने से भी पीछे नहीं हटता।
ता.च. चन्दर/www.prabhasakshi.com

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