करीब पच्चीस साल पहले फोरहंस नामक टूथपेस्ट बनाने वाली कंपनी ने अपने प्रचार अभियान को नया फोकस देते हुए एक नारा गढ़ा था कि डाक्टर का बनाया टूथपेस्ट जो देता है आपके मसूड़ों को सुरक्षा, क्योंकि मसूड़ों का सुरक्षित होना ही दांतों की मजबूती का आधार है। जो केवल फोरहंस ही प्रदान करता है। फोरहंस इस प्रचार अभियान के चलते कई गुणा माल बेचने में कामयाब रहा जबकि हकीकत ये थी कि सभी कंपनियों के टूथपेस्ट भी मसूड़ों के लिए सुरक्षित थे व टूथपेस्ट में ये गुण बहुत पहले से ही मौजूद थे।
गोदरेज कंपनी ने करीब बीस साल पहले अपने रैफ्रीजेटर के प्रचार अभियान में एक नया दावा जोड़ा। गोदरेज रैफ्रीजेटर अब पफ सहित बाजार में उपलब्ध, पफ देता है भीतर से भरपूर ठंडक ये पफ आधारित तकनीक भीतर की ठंडक की लीकेज रोकने में भी सक्षम है। गोदरेज के इस अभियान ने जहां दिन प्रतिदिन गोदरेज की सेल को लंबी चौड़ी बढ़त दिला दी अलबत्ता दूसरी कंपनी वालों के हाथों से भी तोते उड़ गए। कारण? सभी रैफ्रीजेटर पफ तकनीक पर ही आधारित थे। पर गोदरेज ने इसे सेल प्वाइंट के रूप में पेश कर बाजार में बढ़त हासिल कर ली। उसके बाद जिस कंपनी ने भी पफ सहित होने का दावा किया, जनता में संदेश गया कि अब गोदरेज की देखा देखी फलां कंपनी ने भी पफ वाली आप्शन अडाप्ट कर ली है।
इसी प्रकार के.एल.एम नामक एयरलाईन कंपनी ने अपने प्रचार में ये दावा किया कि के.एल.एम यानि सबसे सुरक्षित हवाई सफर। हम हर उड़ान से पहले सुरक्षा की मजबूत चैक अप करते हैं। (अपने विजुअल विज्ञापन में सुरक्षा चैक करते तकनीकी स्टाफ को काफी मुस्तैद दिखाया गया।) मजेदार बात तो ये थी कि तकनीकी सुरक्षा की बारीक चैकअप तो सारी एयरलाईन कंपनियां करती हैं व ये सब करने की कानूनी बाध्यता भी है पर के.एल.एम एयर लाईन वालों ने इसी बात को अपना सेल प्वाइंट बना कर वाहवाही लूट ली।
ये सभी उदाहरण मार्केटिंग व बाजार की कार्यशैली को समझने के लिए दिए गए हैं क्योंकि देश के उत्तरी इलाकों आजकल इसी तर्ज पर डेंगू, प्लेटलेटस व वायरल को ब्रांड बना कर बेचा जा रहा है। हम बचपन में,आठवीं जमात में साइंस के पाठ्यक्रम में पढ़ा करते थे कि हमारे शरीर में दो प्रकार के सैल होते है। सफेद सैल व लाल सैल। सफेद सैल बीमारियों से लड़ते हैं। यदि सफेद सैल कमजोर पड़ जाएं तो लाल सैल हावी हो जाते हैं। शरीर पर चोट लगने पर खून के रूप में लाल सैल बहते हैं व पपड़ी के रूप में जमने वाले सफेद सैल होते हैं जो खून बहने से रोकते हैं। सफैद सैल कम हो जाएं तो शरीर बीमारी से लडऩे में पूरी तरह से सक्षम नहीं रह जाता, तभी व्यक्ति बीमार होता है। सीधी सी बात है कि जब व्यक्ति बीमार होता है तब उसके सफेद सैल कम होते हैं। ये एक सामान्य प्रक्रिया है। पर आजकल प्लेटलेटस के नाम में लिपटे सैल जनता में दहशत का आलम बनाए हुए हैं।
ऊपर से डेंगू और वायरल ऐसे ब्रांड बन गए हैं जिनसे साधारण व्यक्ति प्लेटलेटस,डेंगू और वायरल की ऐसी गडमड व्याख्या का शिकार हो रहा है कि सैल घटने के नाम पर ही ऐसे घबराता है मानो उसको साक्षात मौत दिखने लगी है। उपर से डाक्टर लोग जनता की इस भ्रामक मनोस्थिति को पूरा कैश कर रहे हैं। अस्पतालों, छोटे छोटे क्लिनिकों में लोग इतनी तादात में लेटे देखे जा सकते हैं कि इन स्थानों पर बिस्तर-बैड का मानो अकाल हो गया है। उपर से सैल टैस्ट करने के नाम पर बाजार के गिमिक्स चल रहे हैं। एक लैब से सैल सवा लाख होने का पता चलता है तो दूसरी लैब की रिपोर्ट पच्चहत्तर हजार दिखा देती है। उपर से सैल कम होने की दहशत में आए लोग बीस से पचास हजार का मत्था डाक्टरों को टेक कर भी शुक्र मनाते हैं कि वे इस जंजाल से बच गए। शायद यही कारण है कि अपने पेशे के प्रति प्रतिबद्ध एक डाक्टर(डा. सतीश कुमार शर्मा, जालंधर) ने बाकायदा विज्ञापन देकर जनता को आगाह किया है कि सैल कम होने की स्थिति में घबराएं नहीं ये तीन से दस दिन में अपने आप रिकवर हो जाते हैं।
कुदरत ने ही पकड़ी है बाजू
मेरे एक मित्र के प्लेटलेट्स चालीस हजार रह गए। पर उसके अनुभवी दादा ने बिना किसी अस्पताल की शरण लिए पोते को पपीते के कच्चे पत्तों का तीन समय तक रस पिलाया। सैल दूसरे दिन अस्सी हजार हुए,तीसरे दिन सवा लाख से भी ऊपर पहुंच गए। मैने अपने घर में भी ये तजुर्बा करके देखा है। कुदरत तो कदम कदम पर हमारी रक्षा करने को मौजूद है पर हमीं ने कुदरत को भुला दिया है, शायद इसीलिए भटक भी रहे हैं और घर भी लुटा रहे हैं।
पपीते के पत्तों का कच्चा रस: डेंगू का इलाज
journalistarjun@gmail.com 09814055501
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें