महर्षि दयानन्द को नमन
(187वां जन्मोत्सव, 27 फ़रवरी 2011)
दयानन्द जी ने गौ हत्या का दृढ़ता से विरोध किया। अपनी पुस्तक ‘गौ करुणानिधि’ में स्पष्ट किया है कि मांस भक्षण से मानव मात्र का अपकार होता है, जीवों का पालन करने से प्राणी मात्र का उपकार होता है। स्वामी दयानन्द जी ने नारी शिक्षा आरम्भ करायी।उनको वेद पढ़ने का अधिकार दिलाया। आज यह महर्षि की ही देन है कि देश की महिलाएं अबला से सबला बन गयीं हैं। उन्होंने विधवाओं का पुनर्विवाह कराया। उन्होंने छुआछूत का सदा विरोध किया।
उन्नीसवीं सदी में चारों ओर अराजकता का बोलबाला था। नर हत्या को खेल समझने वाले ठगों के आतंक से जनता सदा त्रस्त रहती थी। सामाजिक स्थिति इतनी दयनीय थी कि चार आश्रमों और चार वर्णों की दृढ़ नींव पर टिके समाज की एक-एक चूल हिल रही थी। छुआछूत ने समाज को हजारों भागों में बांट दिया था। कन्याओं को गला घोंटकर मार दिया जाता था। विधवाओं को ढोल-धमाकों के साथ जबर्दस्ती सती कर देने को परम धर्म समझा जाता था। हजारों वर्ष के अपने पतन के सिलसिले को देखकर भारत मां खून के आंसू रो रही थी। ऐसे घनघोर अंधेरे में अचानक एक बिजली सी चमकी, रेगिस्तान में जैसे अमृत की धारा बह गयी। भारत मां को एक लाल मिल गया जिसको महर्षि दयानन्द सरस्वती के नाम से जाना जाता है।
सन् 1824 में फ़ाल्गुन कृष्ण पक्ष दशमी को गुजरात में टंकारा ग्राम में श्रीकृष्ण जी के घर एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम मूलशंकर रख गया। बाद में शिक्षा व योग्यता के आधार पर विद्वानों ने इनको दयानन्द सरस्वती नाम दिया। वह प्रकाश का रक्षक एवं प्रचारक था। वह प्राणी मात्र का रक्षक था। वह सांसारिक प्रलोभनों और भोगों से लोहा लेने वाला धुरन्धर योद्धा और विजेता था। दयानन्द वह महामानव थाजिसने अध्यात्म को क्रियात्मक रूप देने में अभूतपूर्व सफ़लता प्राप्त की। उन्होंने कहा था कि योगी बनो, साथ ही कर्मयोगी भी बनो।वेदों की ओर लौटो। आत्मज्ञानी बनो परन्तु मानव भी बनो। वह उन व्यक्तियों में से थे जिन्हें वेद और ब्राह्मण ग्रन्थों का अध्ययन करके देवताओं की श्रेणी में अग्रणी माना जाता था। वे मानव जाति की प्रेरणा और आदर के पात्र रहे, आज भी हैं और सदा रहेंगे।
महर्षि दयानन्द सरस्वती ने सर्वप्रथम स्वराज्य शब्द का प्रयोग किया था। उन्होंने कहा था कि सुराज से स्वराज्य श्रेष्ठ है। स्वतन्त्रता संग्राम में 85% लोग उनके अनुयायी थे। कॉंग्रेस का इतिहास इस बात को प्रमाणित करता है। जितने भी शहीद हुए हैं उनके बारे में पता चलता है कि उनके प्रेरणास्रोत महर्षि दयानन्द ही थे।
अन्याय और काले धन का विरोध कर रहे योगगुरू के रूप में विख्यात बाबा रामदेव महर्षि दयानन्द सरस्वती के ही परम भक्त हैं। दयानन्द जी ने गौ हत्या का दृढ़ता से विरोध किया। अपनी पुस्तक ‘गौ करुणानिधि’ में स्पष्ट किया है कि मांस भक्षण से मानव मात्र का अपकार होता है, जीवों का पालन करने से प्राणी मात्र का उपकार होता है। स्वामी दयानन्द जी ने नारी शिक्षा आरम्भ करायी। उनको वेद पढ़ने का अधिकार दिलाया। आज यह महर्षि की ही देन है कि देश की महिलाएं अबला से सबला बन गयीं हैं। उन्होंने विधवाओं का पुनर्विवाह कराया। उन्होंने छुआछूत का सदा विरोध किया। वे मानते थे कि जन्म से कोई अछूत नहीं होता। स्वामी जी ने मूर्ति पूजा का विरोध किया और जीव पूजा का समर्थन किया। वे मानते थे कि भारत की गुलामी के मूल में मूर्ति पूजा ही रही है। उन्होंने एक ईश्वर की पूजा पर बल दिया जिसका मुख्य नाम है ‘ओ३म्’ । उन्होंने लोगों को यज्ञ करने की प्रेरणा दी। उन्होंने पाखण्ड और अन्धविश्वास का हमेशा विरोध किया। शास्त्रार्थ किये। विश्वभर के विद्वानों को उनके आगे घुटने टेकने पड़े। वे एक महान् योद्धा थे। उन्होंने वेदों का भाष्य हिन्दी में किया। स्वामी दयानन्द का प्रमुख ग्रन्थ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ है जिसमें ईश्वर के 108 नामों की व्याखा व 1576 वेद मन्त्रों का विवरण दिया गया है।
उन्होंने सन् 1875 में बम्बई (मुम्बई) में आर्य समाज की स्थापना की। आज आर्य समाज के करोड़ों सदस्य महर्षि के काम को आगे बढ़ा र्हैं। महात्मा गान्धी ने भी लिखा है- महर्षि दयानन्द सरस्वती भारत के आधुनिक ॠषियों व सुधारकों में श्रेष्ठ और अग्रणी थे। उनके कारण ही आज भारत पुन: विश्व गुरू बनने को अग्रसर हो रहा है।
धन्य हैं ऋषि हैं आप, आपने जग जगा दिया। महर्षि दयानन्द सरस्वती के 187वें वर्ष पर हम उन्हें शत्शत् नमन करते हैं।
• सुरेश आर्य
मन्त्री, आर्य समाज, वृन्दावन गार्डन, सहिबाबाद, उ.प्र.
(187वां जन्मोत्सव, 27 फ़रवरी 2011)
दयानन्द जी ने गौ हत्या का दृढ़ता से विरोध किया। अपनी पुस्तक ‘गौ करुणानिधि’ में स्पष्ट किया है कि मांस भक्षण से मानव मात्र का अपकार होता है, जीवों का पालन करने से प्राणी मात्र का उपकार होता है। स्वामी दयानन्द जी ने नारी शिक्षा आरम्भ करायी।उनको वेद पढ़ने का अधिकार दिलाया। आज यह महर्षि की ही देन है कि देश की महिलाएं अबला से सबला बन गयीं हैं। उन्होंने विधवाओं का पुनर्विवाह कराया। उन्होंने छुआछूत का सदा विरोध किया।
सन् 1824 में फ़ाल्गुन कृष्ण पक्ष दशमी को गुजरात में टंकारा ग्राम में श्रीकृष्ण जी के घर एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम मूलशंकर रख गया। बाद में शिक्षा व योग्यता के आधार पर विद्वानों ने इनको दयानन्द सरस्वती नाम दिया। वह प्रकाश का रक्षक एवं प्रचारक था। वह प्राणी मात्र का रक्षक था। वह सांसारिक प्रलोभनों और भोगों से लोहा लेने वाला धुरन्धर योद्धा और विजेता था। दयानन्द वह महामानव थाजिसने अध्यात्म को क्रियात्मक रूप देने में अभूतपूर्व सफ़लता प्राप्त की। उन्होंने कहा था कि योगी बनो, साथ ही कर्मयोगी भी बनो।वेदों की ओर लौटो। आत्मज्ञानी बनो परन्तु मानव भी बनो। वह उन व्यक्तियों में से थे जिन्हें वेद और ब्राह्मण ग्रन्थों का अध्ययन करके देवताओं की श्रेणी में अग्रणी माना जाता था। वे मानव जाति की प्रेरणा और आदर के पात्र रहे, आज भी हैं और सदा रहेंगे।
महर्षि दयानन्द सरस्वती ने सर्वप्रथम स्वराज्य शब्द का प्रयोग किया था। उन्होंने कहा था कि सुराज से स्वराज्य श्रेष्ठ है। स्वतन्त्रता संग्राम में 85% लोग उनके अनुयायी थे। कॉंग्रेस का इतिहास इस बात को प्रमाणित करता है। जितने भी शहीद हुए हैं उनके बारे में पता चलता है कि उनके प्रेरणास्रोत महर्षि दयानन्द ही थे।
अन्याय और काले धन का विरोध कर रहे योगगुरू के रूप में विख्यात बाबा रामदेव महर्षि दयानन्द सरस्वती के ही परम भक्त हैं। दयानन्द जी ने गौ हत्या का दृढ़ता से विरोध किया। अपनी पुस्तक ‘गौ करुणानिधि’ में स्पष्ट किया है कि मांस भक्षण से मानव मात्र का अपकार होता है, जीवों का पालन करने से प्राणी मात्र का उपकार होता है। स्वामी दयानन्द जी ने नारी शिक्षा आरम्भ करायी। उनको वेद पढ़ने का अधिकार दिलाया। आज यह महर्षि की ही देन है कि देश की महिलाएं अबला से सबला बन गयीं हैं। उन्होंने विधवाओं का पुनर्विवाह कराया। उन्होंने छुआछूत का सदा विरोध किया। वे मानते थे कि जन्म से कोई अछूत नहीं होता। स्वामी जी ने मूर्ति पूजा का विरोध किया और जीव पूजा का समर्थन किया। वे मानते थे कि भारत की गुलामी के मूल में मूर्ति पूजा ही रही है। उन्होंने एक ईश्वर की पूजा पर बल दिया जिसका मुख्य नाम है ‘ओ३म्’ । उन्होंने लोगों को यज्ञ करने की प्रेरणा दी। उन्होंने पाखण्ड और अन्धविश्वास का हमेशा विरोध किया। शास्त्रार्थ किये। विश्वभर के विद्वानों को उनके आगे घुटने टेकने पड़े। वे एक महान् योद्धा थे। उन्होंने वेदों का भाष्य हिन्दी में किया। स्वामी दयानन्द का प्रमुख ग्रन्थ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ है जिसमें ईश्वर के 108 नामों की व्याखा व 1576 वेद मन्त्रों का विवरण दिया गया है।
उन्होंने सन् 1875 में बम्बई (मुम्बई) में आर्य समाज की स्थापना की। आज आर्य समाज के करोड़ों सदस्य महर्षि के काम को आगे बढ़ा र्हैं। महात्मा गान्धी ने भी लिखा है- महर्षि दयानन्द सरस्वती भारत के आधुनिक ॠषियों व सुधारकों में श्रेष्ठ और अग्रणी थे। उनके कारण ही आज भारत पुन: विश्व गुरू बनने को अग्रसर हो रहा है।
धन्य हैं ऋषि हैं आप, आपने जग जगा दिया। महर्षि दयानन्द सरस्वती के 187वें वर्ष पर हम उन्हें शत्शत् नमन करते हैं।
• सुरेश आर्य
मन्त्री, आर्य समाज, वृन्दावन गार्डन, सहिबाबाद, उ.प्र.
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